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स्वामी रावण मान करनेसे नष्ट हो गया” | ६२॥
श्रीकृष्णनारायण के यहां दो पुत्ररत्नों का जन्म हुआ । द्वारिकापुरीमें बड़े २ उत्सव हुए। याचकों को इच्छानुसार दान दिया गया । मित्रवर्ग वा बन्धुजनोंका बहुत आदर सन्मान किया गया । कुलीन स्त्रियों ने प्रकार बहुमूल्य वस्त्र भेंटमें दिये गये । नगर में विधिपूर्वक तोरण (बंदनवार) बांधे ये । और जिनमन्दिरों के शिखरों पर पताका लगाई गई । ६३-६५ । कहाँतक वर्णन किया जाय, इतना ही कहना बस होगा कि, सब मनुष्योंने अपने २ घरमें महान् उत्सव मनाया । ठीक ही है, "जब राजा केही पुत्र उत्पन्न हो, तो प्रजा उत्सव क्यों न करे" । ६६ । जिस प्रकार हस्तिनागपुर में श्री शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरः नाथ स्वामीके जन्म कल्याणकके समय देवोंने महोत्सव किया था, उसी प्रकार कृष्णनारायण के पुत्रोंके जन्म में नगर निवासियोंने महान् उत्सव किया | ६७| जब प्राणप्यारी रुक्मिणीको पुत्र उत्पन्न हुआ, तब श्रीकृष्ण जी का चित्त उसमें और भी अधिक आसक्त हो गया। उन्होंने याच कोंको इच्छासे भी अधिक दान दिया |६८ | श्रीकृष्णकी प्रसन्नता और तुष्टिका (संतोषका) पार न रहा । उन्होंने गुरुजनका बहुत ही सन्मान किया और भाई बन्धुगणों को हर एक प्रकार से प्रसन्न करके व सुखसे रहने लगे ।६६। इस प्रकार यदुवंशियोंके राजा श्रीकृष्णनारायण के महलमें पांच दिन तक विधिअनुसार महोत्सव होते रहे । ट्ठे दिन क्या हुआ सो सुनिये - 1७०।
उस दिन सूर्य अस्त हुआ । इसका कारण यह मालूम होता है कि, आजकी रात्रि के समय श्रीकृष्ण नारायण के पुत्रका हरण होनेवाला है, जिससे कृष्णको तथा उसके स्वजनों को बड़ा दुःख होगा और यह दुःख मुझसे न देखा जायगा, ऐसा जानकर मानों सूर्य अस्त हो गया । सो ठीक ही है - सत्पुरुष अपने सन्मुख दूसरे को दुःखित नहीं देख सकते । भावार्थ-दूसरे को दुःखी देखना नहीं चाहते ।७१-७२॥
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प्रद्यन्न,
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