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प्राम्न
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| ३ ३ । निपुणा रुक्मिणी भर्तारके वचनोंको सुनकर अत्यन्त सन्तुष्ट हुई और आज्ञा लेकर अपने महल को वापिस चली आई | स्वामीके वचनोंसे रुक्मिणीको ऐसा विश्वास हो गया, मानों पुत्र उसकी गोद में गया हो | ३४ | राजा मधुका जीव अनेक प्रकारके तपश्चरण करके सोलहवें स्वर्गको प्राप्त हुआ था, वहांसे चयकर रुक्मिणी के गर्भ में प्राप्त हुआ । ३५। उसे पुण्यका प्रभाव ही कहना चाहिये जो चिरकाल तक स्वर्गका सुख भोगकर वह रुक्मिणी के उदरका भूषण बना | ३६ | सत्यभामाने भी इसी प्रकार स्वप्न देखे और कृष्णजीने उसे इसी प्रकार उनका फल कह सुनाया। कोई कल्पवामी जीव स्वर्गसे चयकर सत्यभामा के गर्भ में भी आया । ३७-३८।
श्रीकृष्णजीकी सत्यभामा और रुक्मिणी दोनों रानियों के गर्भके बढ़ते समय जो अङ्गकी चेष्टा हुई, वह प्रसन्नता कारक है । संक्षेपमें उसका वर्णन किया जाता है | ३६ | दोनों गर्भवती रानियोंके नेत्र निर्मल होगये, शरीर पीला पड़ गया । स्तनोंके अग्रभाग बहुत काले पड़ गये चलने फिरने में आलस्य याने लगा, उदर स्थूल होने लगा । त्रिवलीका भंग होगया, और मुखकी सुन्दरता बढ़ने लगी |४०४१ | इसप्रकार शारीरिक अनेक विकार हुए और श्रीकृष्णको आनन्ददायक अनेक दोहले हुए, जिन्हें राजा हर्षसे पूर्ण किये |२| गर्भकालके पूरे नवमास व्यतीत होने पर रुक्मिणी के उत्तम तिथि, शुभनक्षत्र, शुभकरण योग, और पंचांगशुद्धि में पुत्ररत्नका जन्म हुआ । पुत्रकी उत्पत्तिको देखकर रुक्मिणी को प्रमाण आनन्द हुआ । पुत्रको सूर्य के समान प्रतापवान और शुभलक्षणका धारक जानकर रुक्मिणी और उसके कुटुम्बियोंको बड़ी प्रसन्नता तथा तुष्टि हुई बन्धुजनोंने मंगलसे शोभायमान atrist श्रीकृष्ण के पास बधाई देनेके लिये भेजे । ४३-४४।
जिस समय रुक्मिणी के नौकर श्रीकृष्णके पास गये, उस समय वे सोरहे थे । महाराजको नींद रही है, ऐसा जानकर वे कृष्णके चरणोंके पास विनयसे मस्तक नमाकर खड़े हो रहे । यह
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