________________
चरित
एक दिन रुक्मिणी प्रानन्दसे एक कोमल मनोहर फूलोंकी सेजपर पौढ़ी हुई थी, तब उसने रात्रिके पिछले पहरमें जगन्मान्य और परम आनन्दके कर्ता कामदेवकी उत्पत्तिके सूचक छह स्वप्न देखे । २२-२३।
प्रथम स्वप्नमें-रुक्मिणीने अपनेको विमानमें बैठे हुए और राज्यवैभवसहित आकाशमार्गमें क्रीड़ा करते हुए देखा
दूसरे स्वप्नमें-इन्द्रके ऐरावत समान हस्तीको अपने सन्मुख बैठे हुए और गर्जना करते हुए देखा।
तीसरे स्वप्नमें-उदयाचल पर्वतपर उदय होतेहुए और कमलोंको विकसित करतेहुए सूर्यको देखा। चौथे स्वप्नमें बिना धुएँ के जलती हुई अग्नि देखी। पाँचवें स्वप्नमें कुमुदको प्रफुल्लित करनेवाला चन्द्रमा देखा। छ? स्वप्नमें-अपने सन्मुख गर्जते हुए समुद्रको देखा ।२४-२७॥
ऐसे स्वप्न देखनेके पश्चात् प्रातःकाल तुरहीकी आवाज और भाटोंकी विरदावलीसे रुक्मिणी की निद्रा उड़ गई । वह सचेत होकर सेज परसे उठी और विधिपूर्वक स्नान करके वस्त्राभूषण पहनकर अपने प्राणनाथ श्रीकृष्ण जीके पास गई ।२८-२६ । जाते ही भर्तारको उमने नमस्कार किया और आज्ञानुसार वह उनकी बाई ओर सिंहासन पर बैठ गई। जब स्वामीने आनेका कारण पूछा, तब रुक्मिणी बोली, हे नाथ ! मैंने पिछली रातमें सूर्यके उदय होनेके पहले कई स्वप्न देखे हैं। उन्हींके फल सुननेके अभिप्रायसे आई हूँ। ऐसा कहके उसने श्रीकृष्णको छहों स्वप्न कह सुनाये ।३०-३२।
श्रीकृष्णनारायण स्वप्नावली सुनकर परम प्रसन्न हुए। उन्होंने अपनी प्राणवल्लभाको उनका फलं सुना दिया। जिसका सारांश यह है कि, तेरे निश्चयसे आकाशगामी और मोक्षगामी पुत्र होगा
Jain Educerintemational
For Privale & Personal Use Only
www.jagrary.org