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________________ इससे कृष्णजी वा बलदेवजी की भी साक्षी ले लेना चाहिये । इस बातका दृढ़ संकल्प करके अपने विचारको काम में लाने के लिये सत्यभामाने अपनी दूतीको बुलाया, दूतीसे अपना विचार प्रगट किया और रुक्मिणीके महलको भेज दिया। ३.९।। सत्यभामाकी दूती रुक्मिणीके पास मंदमंद. गतिसे डरती हुई पहुँची और रुक्मिणीसे विनयपूर्वक बोली हे माता ! मेरे वचन सुनो, सत्यभामाने मुझे किसी कारणसे भेजा है इस वास्ते में आपके पास आई हूँ। परंतु वे असुहावने वचन मुझसे कहे नहीं जाते।१०-११। तब भीष्मराजकी पुत्री रुक्मिणी ने जवाब दिया हे दृतिके ! तुझसे वह सन्देशा क्यों नहीं कहा जाता ? तेरे समान चाकरोंका तो यही काम है कि, जो कुछ मालिकने कहा हो, वह निर्भय होकर सुना दें। मैं तुझे अभयदान देती हूँ। मेरा कहना तू अन्यथा मत समझ ॥१२.१३। तब दूती बोली, माता ! मैं निवेदन करती हूँ, आप मुनो-सुकेतु विद्याधरकी पुत्री सत्यभामाने आपको यह कहला भेजा है कि "रुक्मिणी ! यदि पुण्यके उदयसे पहले तेरे पुत्र होगा, तो प्रथम धूमधामसे उसीका विवाह होगा, उसमें संदेह नहीं है ।१४-१५॥ और मैं उसकी लग्नके समय उसके पांवके नीचे अपने सिरके केश रक्खूगी पश्चात् बरात चढ़ेगी यह मेरा दृढ़ संकल्प है । और कदाचित् पुग्योदयसे पहले मेरे ही पुत्रकी उत्पत्ति हुई, तो तुझे भी मेरे कहे अनुसार अपने मस्तकके बाल मेरे पुत्रके चरणोंके नीचे लग्न समय रखने होंगे” ११६-१७। तब रुक्मिणीने मुसकराके कहा, दूतिके ! मेरी बहन (सौत) सत्यभामाने जो कुछ कहा है, वह मुझे स्वीकार है ।१८। इस प्रकार अभिमानमें आकर सत्यभामा और रुक्मिणीने अपनी औरकी दो दासियोंको सभामें भेजा सो ठीक हैं “मान सर्वस्वका नाश कर डालता है" ।१९। सभामें जाते ही दोनों दूतियोंने रानियोंका प्रण प्रगट किया और इसमें कृष्ण, बलदेव तथा सर्व यादवोंकी साक्षी ले ली।२०। दूतिय सभासे लौट आई। पश्चात् मानिनी सत्यभामा और रुक्मिणी अपने महलोंमें सुखसे तिष्ठीं । २१ । Jain Eduron international ex For Private & Personal Use Only www. elibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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