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प्रद्यम्न मधु
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सिद्धिसे किसे आनन्द नहीं होता है ? पुण्यके उदयसे प्राणीमात्रको सुखकी प्राप्ति होती है । ३०५३०६ । पुण्य से ही श्रीकृष्णने रुक्मिणी प्राप्त की, शिशुपालादिक शत्रु समूहका - पराजय किया और चरित्र द्वारका राज्यको प्राप्त किया । इससे कहना चाहिये कि "भव्य जीवों को पुण्यके प्रभाव से ही सब वस्तुयें प्राप्त होती हैं” | ३०७ | इसलिये भव्य प्राणियों को श्रीजिनेन्द्रप्रणीत धर्मानुसार पुण्य उपार्जन करना चाहिये । पुण्यसे ही पुण्य समूहकी बढ़वारी होती है और पुण्यसे ही चन्द्रमाके समान मनोहर उज्ज्वल परिणाम होते हैं । जो नरगति और देवगतिके सुख तीन भुवन में मिलने कठिन हैं, वे सब पुण्यके प्रभावसे सहजमें प्राप्त होते हैं, ऐसा जानकर भव्यजीवों को सदाकाल पुण्य संचय करना चाहिये । ३०८ । इति श्री सोमकीर्ति आचार्यविरचित प्रद्युम्नचरित्र संस्कृत ग्रन्थके नवीन हिंदीभाषानुवादमें राजा शिशुपालका वध, श्रीकृष्ण और रुक्मिणीका विवाद सत्यभामा की विडम्बना, और गर्भस्थ सन्तान के सम्बन्धका वर्णनवाला चौथा सर्ग समाप्त हुआ ।
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अथ पंचमः सर्गः ।
जब सत्यभामा का रुक्मिणीद्वारा मान गलित हो गया, तब उसका चित्त अतिशय दुःखित हुआ । वह ठण्डी सांस खींचने लगी और मूर्खतासे विचारने लगी कि मैं ऐसा कौनसा उपाय करू, जिससे रुक्मिणीको ऐमा दुःख उपजै, जो उससे सहा न जाय । १-२ रात दिन सत्यभामा इसी चिंतामें पड़ी रहती थी कि, एक दिन उसे अचानक उस दुर्योधनके दूनकी याद आई, जो विवाह सम्बन्धी बात करने के लिये आया था । वह अपने जीमें फूली नहीं समाई और विचारने लगी, क्या ही बढ़िया उपाय सुझा है जिससे मेरा तो दुःखसे छुटकारा हो जायगा और रुक्मिणीको असह्य दुःख होगा। बात यह है कि, वास्तव में पहले मेरे ही पुत्र उत्पन्न होगा, पीछे रुक्मिणीके पुत्र होगा अथवा नहीं भी होगा। क्योंकि रुक्मिणी से उमरमें, तथा शरीर के आकार में सर्वथा बड़ी हूँ। अनुमानसे सम्भव है कि मेरे पुत्रकी ही उत्पत्ति होगी । इस वास्ते अब मुझे दुःखका छुटकारा पाने का उपाय अवश्य कर डालना चाहिये ।
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