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________________ प्रद्युम्न चरित्र आप उसे अंगीकार करेंगे । वह यह है कि-श्राप की वा मेरी जो श्राामी संतान हो, उसका परस्पर विवाह विधिके अनुसार मित्रताका सम्बन्ध होना चाहिये, जिसकी सब सराहना करेंगे। राजन् ! कदाचित् आप की पटरानीके पुत्ररत्नकी उत्पत्ति हो, और मेरे यहाँ पुत्री हो, तो इन वर कन्याओंका विवाह अवश्य होना चाहिये। यदि पुण्योदयसे मेरे यहाँ पुत्रने अवतार लिया और आपकी महारानीसे पुत्रीका जन्म हुआ, तो भी नियमानुसार विधिसहित विवाह किया जाय । संसारमें समस्त प्राणियोंका यथायोग्य सम्बन्ध होता है। सो यदि आपके जीमें इसप्रकार सम्बन्ध करनेकी उत्कण्ठा हो, तो इस बातका निश्चय हो जाना इष्ट है। इति शम् ।” २८६-६७।। पत्रको सुनके ही श्रीकृष्णमहाराजका हृदय आनंदसे भर गया। उन्होंने प्रसन्नतासे सभाके बीच में कहा, ठीक है, मैं राजा दुर्योधनसे इसी प्रकारका विवाह सम्बध करूंगा। सत्यपुरुषोंको तो योग्य सम्बन्ध करना ही चाहिये, इसमें कोई दोष नहीं है ।।८-९६। ऐसा कहकर कृष्णजीने उस दूतको पान सुपारी वस्त्राभूषण प्रदान किये और सन्तुष्ट चित्तसे उस दूतके साथ अपने दूतोंको भी भूषित कर विदा किया।३००-३०१। श्रीकृष्णजीके दूत भी राजा दुर्योधनके पास पहुँचे । इन्होंने राजाको विनय सहित नमन किया, वार्तालापसे सन्तोषित किया और उपयुक्त संबन्धका निश्चय कर लिया। पश्चात् दुर्योधन राजाने भी कृष्णजीके दूतोंको वस्त्रालंकारादि दे प्रसन्न कर विदा कर दिया। जब दूत लौटकर आ गये, उन्होंने सब समाचार सुनाये, तब राजा कृष्णनारायणको बड़ी प्रसन्नता हुई। ।३०२.३०३। रुक्मिणीको दूतके याने जानेके ये समाचार प्रगट नहीं हुए। केवल सत्यभामाको ही यह चरचा मालूम हुई । अन्य किसी भी स्त्रीने यह बात न जानी। ३०४ । इस प्रकार यादववंशियोंके सहित श्रीलक्ष्मीपति कृष्णनारायणने जिनकी आज्ञाको अनेक राजा अपने मस्तक पर धारण करते थे, रुक्मिणी प्राणवल्लभाके साथ बहुत सुख भोगे। अपने मनोरथकी Jain Eden international For Privale & Personal Use Only www.library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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