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________________ चरित्र हैं” ७८-७६। रुक्मिणी और सत्यभामाने अपनी भुजाओंसे एक दूसरेका आलिंगन किया। पश्चात् सत्यभामाने पूछा, हे कल्याणि ! तेरे शरीरमें साता तो है ? तब रुक्मिणीने जवाब दिया हे सखी ! आपकी कृपासे मैं कुशलतासे हूँ। दोनोंने एक दूसरेकी उमर रूप और सौन्दर्य निहारकर परस्पर प्रेमका करनेवाला वार्तालाप किया। पश्चात् वे दोनों गुणवती रानियें वनमेंसे लौट आई और अपने २ महलों में चली गई।८०.८२। बेचारी सत्यभामा पहले ही दुःखी हो रही थी। उसके संक्लेशका पार ही क्या था ? न्यायकी बात है । ऐसी कौनसी स्त्री है, जिसको अपने भर्तारके अपमानसे दुःख न होता हो ? अर्थात् सबको ही दुःख होता है । इस प्रकार जब वे दोनों चतुर रानिये अपने अपने स्थान में तिष्ठीं, उसी समय एक दूमरी सुप्रसिद्ध कथाका सिलसिला प्रारम्भ हुआ। ८३.८४ । एकदिन कृष्णमहाराज सभामें बिराजे हुए थे। उसी समय-वहाँ कुरुदेशके राजा दुर्योधनका एक दूत आया। उसने आते ही कृष्णजीको विनयपूर्वक नमस्कार किया। फिर उनके सन्मुख एक मनोहर लेख रखकर वह उचित स्थानपर बैठ गया।८५-८६। कृष्णजीने अपने हाथसे लेखको उठाया। और उसे ऊपरी दृष्टि से अवलोकन करके अपने मंत्रीको देदिया। तब मंत्रीने उस पत्रको जिसका अर्थ साफ २ झलकता था, तथा जो कृष्णको अत्यन्त आनन्दका करनेवाला था-सभामें बैठे हुए श्रोता. गणोंके सामने पढ़कर सुनायाः-८७-८८। "स्वस्ति श्रीजिनायनमः । श्री द्वारिकानगरीके महाराजा श्रीकृष्णनारायणको, जिनके चरणारविंद अनेक राजाओंकर सेवित हैं, हस्तिनापुरके राजा दुर्योधनका विनयसहित भक्तिपूर्वक प्रणाम स्वीकृत हो । अपरंच आदरपूर्वक निवेदन है कि, श्रीमान्की कृपासे यहाँ सर्व कुशल हैं । आपकी प्रसन्नता और कुशलता सदा चाहिये । महाराज ! यद्यपि हम सब आपके परोक्ष हैं, दूर रहते हैं, तथापि आप हमारे परम बन्धु हैं, इममें मन्देह नहीं । श्राप पूर्ण हितैषी हैं, अतएव आपसे कुछ प्रार्थना है । आशा है कि Jain Ede international For Private & Personal Use Only www. brary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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