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________________ __ प्रद्युम्न उपासनासे वरदान प्राप्त हो सकता है, तो तुझे अष्टद्रव्यसे नित्य ही उसकी पूजा करनी चाहिये। रुक्मिणीके चरणोंकी पूजा करनेसे मैं तेरा किंकर बन जाऊंगा। ऐसा कहके श्रीकृष्ण खिलखिलाकर चरित्र हँसे, उनके पेट में हँसी न समाई ।२६५-२६८।। जब सत्यभामाने श्रीकृष्णके वचनोंसे जान लिया कि, यह रुक्मिणी ही है, कोई वनदेवी नहीं है । तब वह अत्यन्त लज्जित हुई । उसके परिणाम बहुत संक्लेशित हुए ।२६६। वह क्रोधको दबाकर बाह्य रूपसे अपनी चतुराई बघारने लगी, और प्रसन्नता दिखाती हुई बोली, हे मूर्खशिरोमणि ! सुनो २७। जिस तरह बालगोपाल तुम्हें गोपाल गोपाल कहते हैं, सचमुचमें तुम ऐसे ही हो । इसमें रंचमात्र संदेह करनेकी बात नहीं है । गोपाल अर्थात् गाय बैल चरानेवालेके शरीरकी चेष्टा (चाल ढाल) ऐसी ही होती है । गोपालको छोड़कर कौन विवकी ऐसा निंदनीय और मूर्खताका काम करेगा ? । ७१७२। मैं विधाताकी इससे बड़ी क्या भूल बताऊ', कि उसने ऐसे मूर्खशिरोमणि को तीन खंडका राज्य दे रखा है। ७३ । मूढ़नाथ ! हँसी उड़ानेका तुम्हें क्या अधिकार है ? मैंने यदि रुक्मिणीको अपनी बहन जान नमस्कार किया, तो कौनसा अपराध किग ? जो तुम निर्बुद्धि बनकर हँसी उड़ा रहे हो । ७४-७५ । भला यदि कहीं किसी कारणसे स्त्रिये इकट्ठी हुई हों, तो क्या वहाँ विवेकी पुरुषको जाना उचित है ? कदापि नहीं।२७६। जो आपके समान अविवेकी होते हैं, वे इस बातका विचार नहीं करते । उम समय श्रीकृष्णने सत्यभामाका मिजाज बहुत विगड़ा देखा, इस कारण वे चुपचाप वहाँ से निकल कर अपने गृह चले आये । ७७ । रुक्मिणी भी श्रीकृष्णकी बातचीतसे यह जानकर कि यह सत्यभामा ही है, अपना वनदेवीका रूप छोड़ लज्जित होकर खड़ी हो गई। और फिर उसने सत्यभामाके चरणोंमें विनयपूर्वक नमस्कार किया । सो ठीक ही है, “जो सज्जन उत्तम कुलमें जन्म लेते हैं, वे स्वभावसे ही बड़े विनयवन्त होते Jain Edalon International For Private & Personal Use Only www. library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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