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________________ -- - प्रद्युम्न चरित - विचारी मत्यभामाको, जिसके चित्त में तरह तरहके विचार उठ रहे थे, ठगनेके लिये उसके महल को गये ।१८८-१६०) जव सत्यभामाने देखा कि, नवीन सौतके पति श्रीकृष्ण आये हैं, तब उसने उत्कट द्वेषभावसे ऐसे वचन कहे-नाथ ! क्या आप आज रास्ता भूल गये हैं ? यह तुम्हारा किंवा तुम्हारी प्राणप्यारी का गृह नहीं है। श्रीकृष्णने उत्तर दिया, प्रिये ! मैं तो तेरे पास आनेकी इच्छासे ही आया हूँ। परन्तु यदि तेरे कहे अनुसार मैं भूलकर ही यहाँ आया हूँ, तो अब दूसरी जगह जाने में क्या शोभा है ? ऐसी अनेक प्रकारकी चुभती हुई बातोंसे कृष्णने अप्रसन्न सत्यभामाको राजी किया और बड़ो नरमाईसे मर्म के भेदनेवाले वचन कहे कि हे देवी! निद्राने मुझे वशमें कर रखा है। यदि तेरी आज्ञा हो तो, मैं यहीं नींद ले लूँ । मुझे बहुत जल्दी नींद आ जायगी ।।१-९५। तब सत्यभामा बोली, ठीक है, आपको बड़ी निद्रा प्रारही है। क्योंकि वह नवोढ़ा (नूतन विवाहिता सौत) आपको नींद नहीं लेने देती होगी। उसे तो आपको प्रसन्न करना ही चाहिये । मैं आपसे कुछ नहीं कह सकती हूँ. क्योंकि चिरकाल आपने मेरे साथ भोगविलास किया है ।९६-९७। रसकेलि से थकित होकर ही आप प्रतिदिन मेरे घर आकर सोया करो। सच समझो मैं आपका हित चाहनेवाली हूँ ॥१९८। तब कृष्णजी बोले, भला तू मेरा हित क्यों न चाहेगी ? नवीन स्त्रियें तो होती ही रहती हैं (अर्थात् नवीन नवीन ही है) परंतु तू मेरी सब रानियोंमें अग्रसर प्राणवल्लभा है ।१९९। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण बिछौने पर लेट गये, और अपना मुख वस्त्रसे ढांककर कपटभावसे (झूठमूठ) निद्रा लेने लगे।२००। श्रीकृष्णके दुपट्टे में जो रुक्मिणीके पान का उगाल बँधा हुआ था, उसकी सुगन्धि चहुँओर फैल गई ! जिससे उसपर भौरे पाकर मँडराने लगे। यह देख सत्यभामाने चकित होकर धीरेसे अंचलकी गांठ खोली और विचार किया, कि जो वस्तु रुक्मिणीके लिये बँध रही है, उसको श्रीकृष्णने मुझे दिखाया भी नहीं ! देखो मोहकी लीला ! मुझे तो Jain Educato International For Privale & Personal Use Only www.jainerary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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