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________________ प्रद्यम्न ४२ 1 का विनाश होजाता है । ११६ - १२० । वह संग्राम भूमि घोड़ोंके कटे हुए पांवोंसे घृणाकारक और कबंधों अर्थात् बिना धड़के मनुष्योंके नृत्य से बड़ी भयंकर मालुम पड़ती थी । वहाँ हाथियोंके कुम्भस्थलसे नीचे गिरती हुई लोहूकी धारासे कीचड़ मच रहा था और उसमें डूबे हुये अनेक रथोंसे दिशाका मार्ग रुक रहा था । १२१-१२३ । इस प्रकार युद्ध करके और महान् मदोन्मत्त शत्रुका नाश करके श्रीकृष्ण और बलदेवजी प्रसन्नता पूर्वक रुक्मिणी के पास आये । १२४ । रुक्मिणी, जिसका मस्तक नम्रीभूत हो रहा था और जिसके चित्तमें बड़ी लज्जा व्याप रही थी, अपनी कर अँजुली जोड़कर और नमस्कार करके श्रीकृष्ण से बोली ११२५। भुजपराक्रमके धारक स्वामिन्! मेरी यह प्रार्थना है कि, आप कृपाकरके मेरे भाई को नागपाशसे छोड़ दें - जिसमें कि बलदेवजी उसे बाँध लाये हैं । १२६ । तब कृष्णजीने मुसकराके रूप्यकुमारको छोड़ दिया और उससे कहा, हमने निश्चय किया है कि आप हमारे परम बन्धु स्वजन हो | १२७| इसलिये नेदृष्टि रखके आप हमारे पास आते जाते रहिये और याद रखिये कि रुक्मिणी पकी बहन है | १२८ | मेरे ग्राम, देश, गृहादिक में आप सच्चे प्रेमसे आया जाया करें और रुक्मिणीसे मिला करें। इस प्रकार अनेक बार समझानेपर भी कुमारने लज्जासे कुछ भी उत्तर नहीं दिया और वहाँ से चल दिया । । १२६-१३१। अथानन्तर - कृष्ण बलदेव रुक्मिणीको अच्छी तरह रथमें बैठाकर द्वारिका नगरीको रवाना हुए | १३२ | प्रसन्न चित्त से बलदेवजीने रथको वेगसे चलाया । कृष्णनारायण रुक्मिणीको पाकर अपनेको कृतकृत्य समझने लगे । १३३ । सुंदर रूपके धारक, अपने वांछित पदार्थको प्राप्त करनेवाले और अपने कृतार्थ समझनेवाले वे सब परम्पर प्रेमसे वार्तालाप करने लगे । ३४ । (प्राचार्य कहते हैं) जिस कृष्णराजने शत्रु का पराजय किया और राजा भीष्मकी पुत्री रुक्मिणीको प्राप्त की, उसके महात्म्यको कौन Jain Education International For Private & Personal Use Only चरित्र www.janglibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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