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________________ चरित्र ने बड़ा भयंकर युद्ध किया ।१०६। देवताओंको भी आश्चर्य का करने वाला और शत्रुसमूहके अनेक सुभटोंका नाश करनेवाला वह युद्ध चिरकाल तक हुआ। किसी की सामर्थ्य नहीं हुई कि, बलदेवके सामने आकर (जीता) खड़ा हो ।१०७। जब मार पड़ने पर सब फौज दशों दिशाओंमें रफूचक्कर हुई, तब रूप्यकुमारने भी बलदेवका सामना किया।१०८। उस सुभट शिरोमणिने सेनाके तितरवितर हो जाने से कुपित होकर और क्रोधसे अपने मुखकमलको लाल करके बलदेवके ऊपर एक तीक्ष्ण वाण चलाया ।१०। परन्तु बलदेवजी बज्रका कवच पहने हुए थे, इस कारण उस तेज वाणने उन्हें रंचमात्र बाधा न की।११०। परन्तु जिसप्रकार लोहे की संगतिसे (टक्कर खानेसे) पाषाण में अग्नि उत्पन्न हो जाती है, उसीप्रकार बलदेवजीकी क्रोधरूपी अग्नि भड़क उठी। तब बलदेव और रूप्यकुमारमें, जो संग्राम भूमि में अनेक युद्ध करनेपर भी खेदखिन्न न हुए थे, बड़ी देर तक लड़ाई होती रही।१११-११२। थोड़ीही देरमें बलदेवने भीष्मराजके पुत्र रूप्यकुमारको ढीला करके उस पर नागपाश बाण छोड़ा ।११३। सो नागपाश बाणने रूप्यकुमारको नखसे शिखतक रस्सीके समान जकड़के बांध दिया। इसप्रकार बँधे हुये रूप्यकुमारको बलदेवजीने उठाया, तथा उपे रुक्मिणीको लाकर सौंप दिया और कहा, “लो ! इसकी मक्खियाँ उड़ावो”।११४-११५। दूसरी तरफ कृष्णजीने शिशुपालके साथ नानाप्रकारके हथियारोंसे भयंकर युद्ध किया।११६। पहले उन्होंने बड़ी देरतक लोहेके शस्त्रोंसे युद्ध किया। पश्चात् वे देवोपनीत शस्त्रोंको लेकर परस्पर भिड़ पड़े।११७। जिस समय यहाँ यह घोर युद्ध मच रहा था, उस समय कलहप्रेमी नारदजी आकाशमें तिष्ठे थे और संतुष्ट होकर बारंबार नृत्य करते थे।११८। इसप्रकार श्रीकृष्ण नारायणने शिशुपालके साथ भाँति २ का युद्ध करके अंतमें उस दानी, गुणी, वीर, मानी, भयंकर, कुलीन,रौद्रपरिणामी और क्रोधी शत्र को संग्राममें तेज और शूरतासे रहित करके इसप्रकार कतल कर दिया-जिसप्रकार सिंह गजराजको नष्ट कर देता है। सो ठीक ही है, पुण्यके क्षय होने पर सर्वप्राणियों For Private & Personal Use Only www. Jain Educh Intemational orary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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