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________________ चरित्र लोकनिन्दा का दःख सहना पड़ेगा।१०-१२। इसलिये दयादृष्टिसे मेरे पिता और भ्राताको छोड़ देना। रुक्मिणीके वचन सुनकर कृष्णजी मुस्कराये और बोले हे देवी अपने हृदयमेंसे इस दुःखदायिनी चिंता को दूर करदे मैं सच कहता हूँ कि तेरे पिता और भ्राताको संग्राममें जीवित छोड़ दूँगा। ९३-९४ । कृष्ण के वचनोंको सुनकर रुक्मिणी प्रसन्न हुई और बोली, हे नाथ ! शत्रुराशिसे भरी इस संग्राम भूमिमें आपकी जय हो । ९५ । तब बलदेवजी लक्ष्मीपति श्रीकृष्णसे बोले,-शिशुपाल बड़ा बलवान योद्धा है। मेरा सामर्थ्य नहीं कि उसके साथ युद्ध ठानू।९६। शिशुपालको छोड़कर,सुभटोंसे भरीहुई सर्व सेनाको मैं क्षणमात्रमें जीत लूगा और दशोंदिशाओंमें भगा दूँगा।९७। तुम शिशुपाल महा शूरवीरका संग्राममें पराजय करो, बलदेवजीके ऐसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण बोले, शिशुपालकी आप क्या बात करते हैं ? ।९८। उसे तो मैं क्षणमात्रमें जीतलूंगा और यमराजके घर भेज दूंगा। ऐसा कहके और रुक्मिणीको रथमें छोड़कर शत्रको जीतनेमें लगा है चित्त जिनका, धीरवीर, साहसी, विद्याविशारद वे दोनों योद्धा वहां से आगे बढ़े और समुद्रके समान शिशुपाल की सेनाका उन्होंने सामना किया ।९९-१००। जिस तरह निडर होकर सिंह मदोन्मत्त गजराज पर टूट पड़ता है.उसी तरह श्रीकृष्णने,जिनका मुख क्रोधसे झलझलाहट कर रहा था,शिशुपाल पर आक्रमण किया।१०१शशिशुपाल भी कुपित होकर कृष्णसे भिड़ पड़ा। तब उन दोनों शुरवीर योद्धाओंमें मनुष्योंको बड़े आश्चर्य का करनेवाला घोर युद्ध हुआ ।१०२। दूसरी तरफ बलदेवजीने शेष समस्त सेनाके साथ तेज बाणोंकी वर्षासे बड़ा भयंकर युद्ध किया।१०३।पहाड़के समान मदोन्मत्त हाथियोंको धरातल पर बिछा दिया और बड़े२ शीघ्रगापी घोड़ोंको गिरादिया।१०४॥ हाथी और घोड़ोंपर बैठे हुए बड़े २ अधिकारियोंको चूर कर दिया और कुलीन शक्तिवान शूरवीरों को नष्ट कर दिया।१०५। इसतरह एकतरफकी सब सेनासे बलदेवने और दूसरी तरफकी सब सेनासे श्रीकृष्ण Jain Educenternational For Private & Personal Use Only www.jatorary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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