SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रद्युम्न चरित्र दीखता है । ७६-७७ । इतनी बड़ी सेना तो कहाँ और ये दोनों रूपवान और गुणवान कहाँ ? मेरे कारणसे इन दोनोंका मरण होगा, हाय यह मैंने अच्छा नहीं किया। ७८ । रुक्मिणी निराश और चिंतातुर हुई और दुःखित होकर अपनी आँखोंसे आँसूकी धारा बहाने लगी।७६ । वलदेवजीने उस की ऐसी दशा देखकर कृष्णसे कहा, जरा इस सुन्दरीकी अोर तो झांको ! अपने सामने इतनी जंगी सेनाको देखकर यह कैसी चिंतातुर हो रही है । कोई ऐनी तजबीज करो,जिससे इसे अपना विश्वास हो जाय और धीरज बँध जाय । श्रीकृष्णका हृदय रुक्मिणीको विलाप करते देखकर करुणारससे भर आया। उन्होंने कहा,प्रिये ! मेरी बात सुन,शत्रुकी वड़ी सेनाको देखकर तू चिन्ता मत कर।८०-८२। देख तो सही, मैं क्षणमात्रमें इस सेनाके सुभटों तथा उनके स्वामी राजादिकोंको यमराजके घर भेज देता हूँ।८३। इस प्रकार कहनेसे रुक्मिणीके चित्तको विश्वास न हुआ,इसलिए वह फिर चिन्ता करने लगी। जब श्रीकृष्णने रुक्मिणीको पुनः चिंताग्रसित म्लानमुख देखा, तब कहा हे सौभाग्यशालिनी ! जरा मेरी असामान्य शक्तिको तो देख । मैं अभी तुझे अपनी शक्तिका परिचय दिये देता हूँ जिससे निःसंदेश तुझे विश्वास हो जायगा।८४-८५। यह कहकर कृष्णजीने अपनीअँगूठीका हीरा निकाल कर चुटकीसे चूर्णकर डाला और उसके चूर्णसे रुक्मिणीके हाथमें एक मंगलीक साँथिया बना दिया। पश्चात् उन्होंने एक वाण चलाया और क्षणमात्रमें सामने के सात ताड़के वृक्ष छेद दिये ।८६-८७। ऐसी अलौकिक अचंभेकारक शक्तिको देखकर भी रुक्मिणी पुनः विलाप करने लगी। तब कृष्णने पूछा, हे चन्द्रानने ! कह तो सही अब भी तू किस कारण दुखित हो रही है ?।८८८।तब रुक्मणीने लज्जाको संकोचकर अपने हाथ जोड़कर विनयसे मस्तक झुकाकर निवेदन किया, हे प्राणनाथ ! इसमें संदेह नहीं कि आपका पराक्रम अद्भत है, परन्तु मेरी एक प्रार्थना है, उसपर आप ध्यान दीजिये। वह यह है कि संग्रामभूमिमें आप कृपाकर मेरे पिता और भ्राताको जीवित बचा देवें, नहीं तो संसारमें मुझे www.unelibrary.org Jain Ed For Private & Personal Use Only on international
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy