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चरित्र
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उसने कुण्डनपुरको अपनी समस्त सेनासे घेर लिया, जिसप्रकार गिरिराज सुमेरुपर्वतको तारागणोंने घेर रखा है । १६ । जिस समय शिशुपाल राजाने नगरको इस प्रकार बेढ़ रखा था, उसी समय प्रमद उद्यान में कृष्ण और बलदेवजी आये थे। १७ ।
जब रुक्मिणीने सुना कि कुण्डनपुर घिरा हुआ है, तब वह बड़ी दुःखिता हुई और विचारने लगी कि कृष्णसे विभूषित वनमें अब मैं कैसे जा सकती हूँ। १८ । भुत्राने उसे चिंताग्रसित देखकर कहा, बेटी ! तेरे मुखपर उदासी कैसे छा रही है ? । १६ । रुक्मिणीने उत्तर दिया, भुाजी ! शिशुपाल ने नगरको घेर रखा है। अब मेरा उपवन में जाना कैसे होगा। तब भुश्रा बोली, बेटी! तू दुःखी मत हो, इनके देखते २ ही तेरा उपवनमें बेखटके जाना हो सकेगा। भुषाने रुक्मिणीको ऐसे मीठे २ वाक्यों से धीरज बँधाया । उसी समय उसके (भुयाके) हृदयमें एक उपाय दृष्टि पड़ा। सो ठीक ही है, स्त्रियों में मौका पड़नेपर तत्कालबुद्धि स्फुरायमान होती है । उसने दासीसहित रुक्मिणीको अपने साथ कर लिया और गीत गाती हुई धीरे २ नगरके बाहर निकली। शिशुपालके सिपाहियोंने उस कन्याको स्त्रीसमूहमें जाती देखकर वहीं रोक दी और उनमेंसे कुछ सिपाहियोंने शिशुपालसे जाकर कहा, महाराज! रुक्मिणी नगरके बाहर निकली है और स्त्रियों सहित सघन वनमें जारही है। यह सुनकर शिशुपाल ने राजनीतिसे भरे हुए वचन कहे कि “फौरन जाओ और रुक्मिणीको वनमें जानेसे रोक दो” । तब सिपाहियोंने जाकर रुक्मिणीको रोक दिया और कहा भयंकर वनमें तुम्हें नहीं जाना चाहिये, ऐसी हमारे स्वामी की आज्ञा है । २०-२७ । तब भुनाने कहा, मेरी बात सुनो ! रुक्मिणीने वनमें कामदेवकी यात्रा मनाई है क्योंकि वह एक दिन सखी सहेलियों सहित वनमें क्रीड़ा करनेको गई थी और वहां उसने एक मनोहर कामदेवकी मूर्ति देखी थी। उससमय मूर्तिको प्रणाम करके रुक्मिणीने प्रतिज्ञा की थी कि यदि शिशुपाल राजा मेरा पति होगा, तो मैं लग्नके दिन तेरी यात्राको अाऊंगी। इसप्रकार यथेष्ट वर
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