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________________ __ प्रद्युम्न चरित्र कदापि नहीं, इसी बात का उसने व्रत धारण कर लिया है । वह सुंदरी आपके ही लिए उस बगीचेमें श्रावेगी व आपको चहुंओर देखेगी। कदाचित् उस बालाको आपके दर्शन नहीं होंगे, तो वहीं अपने प्राण त्याग देगी।७५-८३। जिससे आपको स्त्रीहत्या का पाप लगेगा। इस कार्य में श्राप ढील न करें, शीघ्र ही प्रमदवनमें पधारें, यही प्रार्थना है । ८४ । इसप्रकार कहके, श्रीकृष्णको प्रणाम करके दूत वहां से रवाना होनेको तैय्यार हुआ। श्रीकृष्णने उसे वस्त्राभूषण देकर विदा किया । ८५ । दूत के चले जाने पर श्रीकृष्ण (जिनका चित्त रुक्मिणीमें ही लगा हुआ था) और बलदेवजी युक्ति सोचने लगे। ८६ । उन्होंने विचारा कि कोई ऐसी युक्ति करनी चाहिये, जो सत्यभामाको मालुम न होने पावे । कारण वह विद्याधरकी पुत्री है। कहीं विद्याके बलसे अपने कार्य में कोई विघ्न न कर बैठे । ८७ । पश्चात् उन्होंने कुडनपुर जानेका दृढ़ विचार कर लिया और इसी अभिप्रायसे वे दोनों भाई रात्रिके पिछले प्रहरके समय कवच पहनकर अपने स्वरूपको छुपाकर और अनेक शस्त्र धारण करके रथमें बैठकर कुण्डनपुरको रवाना हो गये । सिवाय चित्तके धैर्यके जिनका कोई दूसरा साथी न था, रुक्मिणी में ही जिनका मन लग रहा था, जो सब कलाओंमें कुशल थे और जो बड़े गुणवान थे, ऐसे कृष्ण बलभद्र दिलकी दौड़के समान शीघ्रगामी रथपर बैठकर कुण्डनपुरके प्रमद उद्यानके पास पहुँचे।८८-६१। जब दूरसे ही श्रीकृष्णने रमणीक कुण्डनपुर को देखा, तब वे कहने लगे, देव जाने क्या होता है ? ।।२। पश्चात् कर्तव्यको चित्तमें ठानकर वे धर्मरूपी धनके धारण करने वाले सुदरमुखवाले निःसहाय श्रीकृष्ण बलभद्र कुण्डनपुरके प्रमदउद्यानमें बहुत शीघ्र पहुँच गयो२६३। इति श्रीसोमकीर्ति आचार्यविरचित प्रद्युम्नचरित्र ग्रन्थ के हिंदी भाषानुवादमें श्रीकृष्ण बलदेवका प्रमदोयानगमनवृत्तान्तवाला तीसरा सर्ग समाप्त अथ चतुर्थः सर्गः । वह प्रमद उद्यान ऐसा शोभायमान हुआ, मानों नानाप्रकारके वृक्षोंसहित और पुष्पोंके समूहसे Jain Ed on international For Privale & Personal Use Only www.nelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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