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प्रद्युम्न
पानी पीना चाहती है और न रात्रिको (चिंतातुर होनेके कारणसे ) उसे नींद आती है।६६। चन्द्रमा की चांदनी उसे विषके समान लगती है और शरीरमें लेपन किया हुआ चन्दन अग्निके चरित्र समान दाह करता है । उसका मन आपमें ही आसक्त हो रहा है। इस कारण बारम्बार वह ठन्डी श्वास लेती है ।७०। आपके ही नामकी गणनासे अथात् आपके ही नामकी माला फेरते रहनेसे वह जी रही है, इसमें कुछ संदेह नहीं है । ऐसा जानकर हे नाथ ! आप यथोचित प्रयत्न कीजिये. जो परम सुखका कर्ता हो । श्राप मेरे वचन यथार्थ और सारगर्भित समझे और कर्तव्यको चित्तमें ठानकर यथोचित उपाय करें। यही मेरी प्रार्थना है । ७१-७२ ।
श्रीकृष्ण और बलदेवजीने कुशल दूतके वचन ध्यानपूर्वक सुने । पश्चात् प्रेमके अत्यन्त वशीभूत होकर कृष्णजीने दूतसे पूछा ।७३। वहाँ जाकर कहाँ तो ठहरना होगा ? मेरा उसके पास कैसे जाना होगा ? वह मुझे कैसे मिलेगी ? ये सब वृत्तान्त तुम मुझसे कहो ।७४। तब दूतने विनयपूर्वक निवेदन किया, महाराज ! आप शीघ्र ही कुंडनपुरको पधारें । वहाँ एक “प्रमद” नामका बगीचा है, जो अनेक प्रकारके वृक्ष लतादिकोंसे भरपूर है । उसमें एक अशोक नामका वृक्ष है, जिसके तले एक कामदेवकी मूर्ति है । वह रुक्मिणीने आपको प्राप्त करनेकी अभिलाषासे स्थापित की है। उस अशोक वृक्षपर मनोहर पताका लग रही हैं सो उसी वृक्षके पास हे नाथ ! आप पधारें और पासके वृक्षसमूहकी अोटमें छुपकर बैठ जावें । कारण निःसन्देह रुक्मिणी वहाँ कामदेवकी पूजनको आवेगी। वह कुमारी पूजाके छलसे अपनी सखियोंको दूरही छोड़कर अकेली वहाँ आवेगी और आपसे मिलेगी। इसलिये अपना हित जानकर आपको वहाँ अवश्य पधारना चाहिये । यह आप निश्चय समझिये कि
आपको छोड़कर वह वाला दूसरा पति न करेगी। क्या सिंहनी कभी श्यालके (सोमायुके) बच्चेसे रमण करती है ? कभी नहीं। उसीप्रकार क्या वह आपके सिवाय किसी दूसरेको अंगीकार कर सकती है?
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