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________________ प्रद्यम्ना unik चित्तको प्रसन्न करनेवाले एक प्रेमसंबंधी कार्य के लिये आया हूँ" दूतके वचन सुनकर द्वारपाल राजाके पास गया ।२३४-२३६। उसने नमस्कार किया और दूतसम्बन्धी वार्ता कह सुनाई । कृष्णजीने आज्ञा चरित्र दी कि उसे सन्मानपूर्वक बहुत जल्दी मेरे पास ले पात्रो ।२३७-२३८। आज्ञानुसार द्वारपाल द तको सभाके भीतर ले आया। श्रीकृष्णकी सभाके दर्शन करके दूतका हृदय आनंदसे भर गया। श्रीकृष्णजी को प्रणाम करके वह बतलाये हुए स्थान गया व श्रीकृष्णजीको कुछ संकेत किया। जिसे समझकर उन्होंने प्रतिहारीको इशारेसे प्राज्ञा दी और उसने सभाको विसर्जन कर दी।२३६-२४१॥ पश्चात् श्रीकृष्णने दूतसे आनेका कारण पूछा, तब वह विनयपूर्वक बोला, स्वामिन् ! आपसे कुछ निवेदन करना है, जिसके श्रवणमात्रसे आपके हृदयमें प्रमोद उत्पन्न होगा। कृष्णजीको दतके वचनोंसे संतोष हुआ। इस कारण वे अपने भ्राता बलदेवसहित दतको लेकर महलमें गये और एकान्त स्थानमें जा विराजे । दूतभी यथोचित स्थानपर बैठ गया।२४२-२४५। श्रीकृष्णजीने दूतसे पुनः वृत्तान्त पूछा, तब बोला "नाथ ! मेरे वाक्य प्रमके कारणभूत और सत्पुरुषोंके माननीय हैं। उन्हें सारभूत और यथार्थ समझकर ध्यानसे सुनें । ४६-४७ । रमणीक कुण्डनपुर नगरमें सुप्रसिद्ध भीष्म नामका राजा राज्य करता है, जो अनेक राजाओं द्वारा सेवित और शत्रु समूहको जीतनेवाला है ।२४८। उसकी श्रीमती नामकी प्राणप्रिया है, जो जगद्विख्यात और मनोहर स्वरूपकी धारण करनेवाली है। जिसका महाशीलवान व गुणवान रूप्यकुमार नामका पुत्र है । जिसप्रकार इन्द्रका पुत्र जयन्त और महादेवका पुत्र षड़ानन शूरवीर, धीर और मानी है, उसीप्रकार भीष्मराजका रूप्यकुमार भी है।४६-५०। इस कुमारकी जो छोटी बहिन है, वह रूपवती गुणवती और नवयौवनसम्पन्न है । उसका मुख चन्द्रमाके समान सुन्दर है ।५१। जिसप्रकार समुद्रसे लक्ष्मी, पर्वतसे पार्वती, ब्रह्माजीसे सरस्वती उत्पन्न हुई और जगतमें विख्यात हुई हैं, उसीप्रकार श्री Jain Educe international For Private & Personal Use Only www.jagrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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