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________________ चरित्र परंतु चिन्तातुर होने लगे कि किस तरहसे वह सुन्दरी मुझे प्राप्त हो। मैं यह वार्ता किससे कहूँ ? इस | प्रकार सचिन्त दशाका अवलंबन करके कृष्णजी अपने घर ही रहने लगे। उन्हें दिनको न भूख लगे और न रात्रिको नींद आवे । जिस समय कृष्णनारायण रुक्मिणिके लिये ऐसे चिताग्रसित हो रहे थे, उसी समय रुक्मिणीके यहाँ एक दूसरी घटना हुई, वह सुननेके योग्य है । २०-२४ । बुद्धिवान् राजा शिशुपालने मुझे (रुक्मिणिको) विवाहनेके लिये लग्नपत्र शुधवाया है ऐसा सुनते ही रुक्मिणिको बड़ी चिंता व्यापी। उसने अपना दुःख अपनी भुप्रासे निवेदन किया कि यदि श्री कृष्णका मुझसे वियोग हुअा अर्थात् यदि मेरा उनसे संबंध न हुआ, तो समझ रखना, मैं जीवित नहीं रहूंगी। तब भुत्रा बोली बेटी ! तू वृथा ही दुःखी क्यों हो रही है ? जैसी तेरी इच्छा होगी, मैं उसे सफल करनेका उपाय करूँगी। तब भुत्रा भतीजीने अपने “कुशल” नामक दूतको बुलाया, जो सर्व कलामें कुशल (निपुण) था और यौवन अवस्था सम्पन्न था उससे सब रहस्य की बात कहकर तथा एक उत्तमतासे लिखा हुआ प्रेमसूचक वाक्योंसे भरा हुआ पत्र देकर श्रीकृष्णके पास जाने के लिये रवाना कर दिया। ज्यों ही दूत कुंडनपुरसे द्वारिकाको रवाना हुआ, त्यों ही उसे अनेक शुभ शकुन हुये, जिनसे उसका चित्त रंजायमान हुआ । २५-३० । “कुशल" दूत रमणीक द्वारिका पहुँचा । वह उसे देखते ही चकित हो गया। विचारने लगा कि, यह इन्द्रकी पुरी अमरावती पृथ्वीपर कैसे आ गई ? ॥२३१। फिर बड़े आश्चर्यसे चहुँ ओर निरखता हुअा दूत प्रसन्न चित्तसे राजमार्गसे आगे बढ़ा।२३२॥ राजद्वारपर पहुँचकर उसने द्वारपालसे कहा कि, श्रीकृष्ण महाराजसे मेरे आनेका समाचार कहो ।२३३॥ द्वारपालने पूछा, तुम कौन हो ? कहाँसे आये हो और किसने तुम्हें भेजा है तब इतने सरसतासे उत्तर दिया-मैं विदेशसे आया हूँ और विदेशी राजाने मुझे भेजा है। तुम अपने स्वामी श्रीकृष्णके पास जागो और उनसे ऐसा कहो कि "मैं आपके Jain Educh interational For Privale & Personal Use Only www.jabrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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