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प्रद्यम्ना
चरित्र
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प्रकार अनेकवाक्योंसे नारदजीने कृष्णके चित्तको मोहितकिया तब । कृष्णजीने जी खोलकर पूछा यह बाला विवाहिता है या कुवारी ? सब बातका खुलासा हाल आप सुनायो। तब नारदजीने जवाब दिया यह श्रेष्ठ सुन्दरी कुंवारी ही है ।८-६। परन्तु बन्धुजनादिके बिना पूछे इसे उसके भाईने राजा शिशुपालको देनी कर दी है । कारण जब कुमार उसके घर गया था, तब वह उसके श्रादर सन्मानसे संतुष्ट हो गया था।१०-११। इसलिये जबतक तुम संग्राममें चंदेरीके राजा शिशुपालको नष्ट न करोगे, तब तक रुक्मिणी न मिल सकेगी। कारण शिशुपाल बलवान है, उसके जीतेजी आपका सामर्थ्य नहीं है कि रुक्मिणी को पा सको। १२ । ऐसा सुनतेही कृष्णजीका मुख कुछ कृष्ण (उदास) पड़ गया। तब नारदजी बोले, कृष्णजी तुम अपने चित्तको कातर (भयभीत) मत करो। रुक्मिणी तुम्हें बिना कठिनाईके मिल सकेगी।१३। कारण "शूरवीर पुरुषोंको सब कुछ मिल सकता है, डरपोकोंको कुछ नहीं मिलता" । इसलिए कायरताको छोड़ दो और धीरज धारण करो।१४। हे कृष्ण ! जिस सुंदरीकी छवि पर तुम मोहित हो गये हो, उसे मैंने उसीके पिताके घर (माता पिताके पास) देखा है । वह अभीसे तुम्हारे घर आ गई, ऐसा तुम दिलमें निश्चय कर लो।१५। तुम वृथा ही चित्त दुःखी न करो। कारण कार्य अकार्यका विचार करनेवाले “उद्योगी पुरुषोंकोही सुख मिलता है, आलसी पुरुषों को कभी सुख प्राप्त नहीं होता" ।१६। यदि तुम्हारी अभिलाषा स्त्रियोंमें रमण करनेकी हो तो जगत्प्रसिद्ध सुन्दरी रुक्मिणीको प्राप्तकरो ।१७। जिस प्रकार द्विजपति, औषधिपति तथा कलावंत चन्द्रमा को पूर्णमासीके सिवाय दूसरीरात्रि शोभाके लिये नहीं होती, उसीतरह जब तक तुम्हारे घर वह सुन्दरी न आ जाय, तब तक तुम्हारी सैकड़ों हजारों वा लाखों रानियें सब व्यर्थ हैं ।१८-१६। ऐसे तरहर के वाक्योंसे श्रीकृष्णको मोहित करके नारदजी प्रसन्नचित्तसे अपने यथायोग्य स्थानको चलेगये । इनके जाते ही कृष्णजीको मूर्छा आ गई, परन्तु बन्धुजनोंने शीतोपचार किया जिससे वे सचेत हो गये।
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