________________
चरित्र
को देखनेके लिए दर्पणकी क्या आवश्यकता है । “करकंघनको पारसी क्या ?” इसप्रकार श्रीकृष्णने बड़ी देर तक विचारसागरमें गोते लगाए। पीछे जिन २ बातोंका दिलमें सन्देह पैठ रहा था, वे सब विनयपूर्वक नारदजीसे पूछीं कि हे स्वामिन् ! ये किसका रूप है ? आपने इस मोहनी सूरतको कहाँ देख कर खींची। इसका पूरा २ परिचय मुझे कृपा करके कराइये ।।४-६७। कारण चित्राममें खिंची हई सुन्दरीको देखकर मेरा मनमानों कीलित होगया है, वशीभूत व मोहित करलिया गया है। इसको देखते ही एकदम मेरा चित्त चलायमान हो गया है ।।८। कृष्णजीकी बातको सुनकर नारदजी बड़े प्रसन्न हये और बोले राजन् ! अपने दिलको दुःखी मत करो। यह किसी देवांगना, गांधर्षी वा विद्याधरीका रूप नहीं है, किंतु एक भूमिगोवरी मनुष्यनीका ही रूप है । मैं इसका वृत्तान्त कहता हूं, सुनो।१६६।
एक कुडनपुर नामका नगर है, जिसमें भीष्म नामका राजा राज्य करता है । उसकी जगद्विख्यात सर्व रानियोंमें श्रेष्ठ श्रीमती नामकी प्रिया है और श्रीमती रानीकी एक रुक्मिणी नामक पुत्री है उसीका स्वरूप इस चित्रपटपर खिंचा हुआ है । रुक्मिणी पृथ्वीपर शोभायमान शुभलक्षणोंवा गुणोंकी निधि ही है। २००-२०१ । मैंने लवणसमुद्र तककी भूमि देख डाली। विद्याधरों वा भूमिगोचरी राजाओंकी राजधानी वा महलों में भी में घूम आया, परन्तु मेरी दृष्टिमें कोई भी ऐसीस्त्री न आई जो सुन्दरतामें रुक्मिणीके अंगूठेकी भी समानता कर सके । पृथ्वीतलपर ऐसी मनोहर सुन्दरी कोई भी नहीं है।२०२-२०३। रुक्मिणी जगत्प्रसिद्ध है । नवयौवन सम्पन्न है और सुदरतारूपी जलकी बावड़ी है। आपने उसका नाम सुना ही होगा।४। उसे बनाकर ही ब्रह्माने अपनेको कृत्यकृत्य समझा है । इसके पहले स्त्रियोंकी रचनासे उसका दिल नहीं भरा था ।५। परन्तु जब तक वह गुणवती युवती तुम्हारे घर विवाहित होकर न पा जावे तब तक यह बात तुम गुप्त ही रखना ।३। संसारमें तुम्हारा अवतार लेना तभी सार्थक होगा, जब जगद्विख्यात रुक्मिणी तुम्हारे साथ रमण करेगी।७। इस
www.finelibrary.org
Jain Ed
on international
For Private & Personal Use Only