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प्रद्युम्न
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पर खिंची हुई है, मेरे चित्तको चुरा लिया है । वे बड़ी देरतक टकटकी लगाकर उस मनोहर रूपको देखते रहे और विचारने लगे कि नारदको ऐसी सुन्दरी कहाँ देखनेको मिली, जिसका यह चित्राम खींच कर उतावली से लेाये । ८० ८२ । ब्रह्माने ऐसी रूपवतीको कैसे बनाया ? जगतमें कहीं भी अभी ऐसी सुन्दरी नहीं है-न पहले कभी हुई है और न आगे होवेगी । ८३ । जिसने अपनी चोटी से (वेणीसे) काले नागोंकी कृष्णता वा नरमाई को, बोली से अमृतको, ललाटसे अष्टमी के चन्द्रमाको मुखसे चन्द्रमाको, नासिका से सूवेकी चोंचको नेत्रोंसे मृगीको, भौहों से कामदेव के धनुषको, कंठसे शंखको, स्वर से कोकिलाको, स्तनोंसे नारियलको, भुजा से पुष्पों की मालाको और मनोहर उदर सहित कमर से इन्द्र धनुषको जीता है और जिसकी गंभीर नाभि लावण्यजलकी वापिकासी जान पड़ती है । ८४-८७ । जिसकी जांघ और पुष्ट नितम्ब कदलीस्तंभ के समान हैं और जिसके चरण गुलाईदार जांघों से बड़े मनोहर दीख पड़ते हैं | जिसने अपनी हथेली और चरणके तलुओं से कमलोंको परास्त किया है, जिसके शरीरका रंग ताये हुये सुवर्ण के समान है, जिसने अपनी कांति से चन्द्रमाका, तेजसे सूर्यका और गंभीरता से समुद्रका पराजय किया, जो शुभ लक्षणोंकी धारण करने वाली और सर्वांग सुन्दर है । |८६-६०। यह कौन है कहाँसे आई है किस प्रकार और किस हेतुसे इसकी यह छवि खींची गई है। नारद ने इसे कैसे देखा और किस तरह उसकी मनोहर प्राकृतिको पटपर उतारा । ६१ | यह इन्द्रानी है कि कामदेवकी पत्नी रति है । चन्द्रमा की प्राण प्यारी है कि सूर्यकी कान्ता है । कीर्तिकी मूर्ति है कि साक्षात् सरस्वतीका ही रूप है । यक्षिणी है कि कोई किन्नरी है । यथार्थमें यह रूप किसका है । ।६२-६३ । इसतरह अचम्भे में पड़कर श्रीकृष्णने अनेक संकल्प विकल्प किये और चिरकालतक वह उस चित्रपटको एक ध्यान से देखते रहे । पश्चात् विचार किया कि मैं इतनी उलझन में क्यों पड़ा हुआ हूँ, नारदजीसे ही चित्रपटपर खिंची हुई सुन्दरीका वृत्तान्त क्यों न पूछ लूं । हाथमें पहने हुए कंकण
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चरित्र
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