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________________ इसलिए तू चिंता मतकर, भवितव्य अच्छा ही होगा।६५। मैं ऐसा उपाय रचूंगी, जिससे श्रीकृष्णजी निःसन्देह तेरे भरतार होंगे ।६६। भुयाके वचनोंको सुनकर रुक्मिणी दिलमें फूली नहीं समाई। चरित्र कृष्णजीके होनहार समागमको सुनकर उसको बड़ा संतोष हुा ।६७। तदनन्तर बारम्बार अनेक प्रकार से कृष्णनारायणकी प्रशंसा करके और उसे रुक्मिणीके दिलमें ठसाके नारदजी वहाँ से दूसरी जगह रवाना हो गये।६८। कुण्डनपुरसे चलकर नारदजी कैलाशशिखर पर पहुँचे । वहाँ बैठकर उन्होंने रुक्मिणीके रूपका एक चित्रपट बनाया । वह जब बिल्कुल ठीक बनगया, तब नारदजी बड़ी प्रसन्नतासे उसे साथमें लेकर शीघ्रतासे द्वारिकाको चले ।६९-७१। श्रीकृष्णजी सभामें विराजे हुए थे, वहींसे उन्होंने अाकाश मार्ग से प्राते हुए नारदजीको देखा । जब मुनिको निकट आते देखा, तब कृष्णजीने खड़े होकर तथा आगे बढ़कर उनका सत्कार किया और अपना प्रासन दिया। नारदजी आशीर्वादसे राजाको सन्तोषित करके सिंहासन पर बैठ गये कृष्णजी भी दूसरे आसन पर बैठ गये, धर्म कथा होने लगी। पश्चात् कृष्णजी और नारदजीने जिनका कि चित्त प्रेमसे भरा हुआ था, परस्पर कुशल प्रश्नादि वार्तालाप किया १७२-७५। अवसर देखकर श्रीकृष्ण बोले महाराज मैं आपसे एक दिल की बात पूछता हूँ। आप अढ़ाई द्वीपमें सर्वत्र परिभमण करते हैं, इसलिये यदि आपने कहीं कोई विनोदकी बात सुनी हो अथवा कोई चमत्कार देखा हो, तो मुझे सुनाइये । और यदि मेरे लायक कोई नवीन वस्तु लाये हो, तो वह भी दिखाओ। क्योंकि आप मेरे परम मित्र हैं । आपके समान मेरा और कोई मित्र नहीं है ।७६-७८। कृष्णके वाक्योंको सुनकर नारदजी प्रसन्न हुए, मुखसे कुछ न बोले केवल अपने हाथको पसारकर उन्होंने कृष्णके सामने रुक्मिणीके स्वरूपका चित्रपट रख दिया।७६ । कृष्णजीने ज्योंही चित्रपट पर अपनी दृष्टि डाली, त्यों ही वे चकित हो गये और विचारने लगे कि सचमुचमें इस सुन्दरीने जिसकी छवि चित्रपट Jain Eduron international For Private & Personal Use Only www.jalbrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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