________________
प्रद्यम्न
२४
Jain Educati
लाभ है । पिताका एकभी भक्त सुपुत्र हो, तो वही बस है । ४६-५१। तबभीष्मराजने कहा बेटा ! तू अभी सुकुमार है, तुझे युद्धकर्मका अभी अभ्यास नहीं है, इसकारण तुझे शत्रु के सम्मुखजाना उचि नहीं है । तबकुमारने प्रत्युत्तर दिया, पिताजी ! पृथ्वीतलपर पुरुषके शक्तिशालीपने की ही प्रशंसा की जाती । देखिये- गजराज कितना स्थल होता है और सिंह कितना पतला होता है, परन्तु सिंह की गर्जनामात्रसे सैंकड़ों हस्ती क्षणमात्रमें भाग जाते हैं, । ५२-५४ । अतएव यही कहना चाहिये कि " शूरवीरतासे सर्व कार्य सिद्ध होते हैं, इसमें अवस्थाकी कोई अपेक्षा नहीं है ।" आपके पुण्यके प्रभावसे मैं क्षणमात्रमें शत्रु का पराजय करूंगा । ५५ । पुत्रके वचनोंको सुनकर पिताको सन्तोष हुआ और उसने अनेक शकुनोंकी प्रेरणा से अपने पुत्रको सेनाके मध्य में भेजकर उसके चित्तको प्रफुल्लित किया । ५६ । जबरूप्यकुमार सेनासहित जाकर चन्देरीकेराजा शिशुपालसे मिला, तब उसने कुमारका बहुतही सम्मान किया । पश्चात् रूप्यकुमार वा उसकी सेनासहित राजा शिशुपाल युद्धको रवाना हुआ, संग्राममें उसने शत्रु का पराजय किया । और विजयसामग्रीको साथमें लेकर चेदिपति अपने घर लौट आया ।५७-५८ । रूप्यकुमारकी सेनाके बलसेही शिशुपालने संग्राम में जयप्राप्त किया इसकारण रूप्यकुमार उसका प्रेमपात्र बन गया । ५६ । चेदिपतिने (चंदेरी के राजा शिशुपालने) उसका अत्यन्त चादर सन्मानकिया, जिससे कुमारने बहुत ही सन्तुष्ट होकर अपनी रुक्मिणी बहिन उसे देनी कह दी। यह सुनते ही वेदिपतिको पार नन्द हुआ और संतुष्ट होकर उनने रूप्यकुमारको वस्त्राभूषण सवारीसहित विदा कर दिया । कुमारने अपने घर आकर मातापितादिसे सब वृत्तान्त निवेदन किया, जिससे सबक संतोष हुआ । इस तरह रूप्यकुमारका राजा शिशुपाल के पास जाने यादिका वृत्तांत है । ६०-६३॥ तदनन्तर भुयाने रुक्मिणीसे कहा, बेटी ! बतुझे मालुम हुआ कि मातापिताने नहीं, किंतु तेरे भाईने तुझे चेदिराजको देनी की है । ६४ । संसार में मातापिताकी दी हुई कन्या दूसरेकी कही जाती है ।
International
For Private & Personal Use Only
चरित्र
www.jaiellbrary.org