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चरिः
२३ ।
मुनियोंके वाक्य सत्य हैं, उनका कथन कभी असत्य नहीं हो सकता, लोकमें भी प्रसिद्ध है कि मुनियों का कहा हुअा अन्यथा नहीं होता। तब रुक्मिणी बोली, ये बात कैसे बन सकती है ? कारण मुझे तो शिशुपालको देनी कर दी है। तब भुत्राने उत्तर दिया, बेटी तू चित्तमें वृथा ही क्यों खेदखिन्न हो रही है, मेरा कहा सुन ! तेरे माता पिताने तुझे शिशुपालको देनी नहीं की है, किन्तु यह तेरे रूप्यकुमार भाईकी करतूत है, जो कारणवशात् वह गया था और सन्मानको पाकर संतुष्ट हो देनी कर आया है।३८-४१॥
इसतरह वृत्तांतसुनकर राजाश्रोणिकने गणधरस्वामीसे प्रश्न किया कि शिशुपालके पास रूप्य. कुमार किस कारणसे गया था ? तब गौतमस्वामी बोले, श्रोणिक ! मैं इसका वृत्तांत सुनाता हूँ, ध्यान से सुनो। एक दिन जब शिशुपाल शत्रुओंपर चढ़ाई करनेको तैयार हुआ, तब उसने राजा भीष्मके पास एक दूत भेजा और उससे यह संदेशा कहलाया कि आपको अपनी सेनासहित मेरे पास बहुत शीघ्र पाना चाहिये । दूतकेवचन सुनकर राजा भीष्म बहुत शीघ्र कवच (जिरहबख्तर) पहनी हुई और शस्त्र धारण की हुई अपनी सेनाको इकट्ठी करके रवाना होनेको उद्यत हुा । ४२-४५ । चलते समय वह अपने रूप्यकुमार पुत्रको राज्यसत्ता सौंपने लगा, कारण यह बुद्धिवानोंकी नीति है।४६। तब अपने पिताको इस कार्य में उद्यत हुभा देख रूप्यकुमार बोला, पिताजी ! ये आप क्या करते हो? इतना कहतेही वह यौवनशाली कुमार स्वयं सेनासहित शिशुपालके पास जानेको तैयार होगया। तब राजाभीष्मने कहा, बेटा! तुम्हें कुलपरम्परासे प्राप्त होने और शत्रु ओंकी बाधासे रहित ऐसे इस राज्य की रक्षा करनी उचित है। मुझे सेनासहित जानेदो। तब कुमारने अपना सिर झुका लिया और कहा पिताजी ! मुझपुत्रके विद्यमान होनेपर भी आप किस तरह जा सकते हैं ? कारण पुत्रका यही धर्म है कि अपने मातापिताको सुखी रखे । अन्यथा शोक संतापके करनेवाले बहुतसे पुत्रोंकी उत्पत्तिसे क्या
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