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________________ - - - धीरवीरताको हम और कहांतक वर्णन करें ? जिनकी धीखीरता और ऐश्वर्यको वृहस्पति भी वर्णन नहीं कर सकता, उसे हे पुत्री ! मैं एक जिह्वासे कैसे वर्णन कर सकता हूँ।१२०-१२४॥ नारदजीके -चरित्र वचन सुनकर भीष्मकी बहिन बोली रुक्मिणी तूने जगतके हिताकांक्षी नारदजीके वचन सुने कि नहीं? तू यही सत्य समझ ।१२५-1 तब रुक्मिणी बोली, भुवाजी ! मुनिके वाक्योंको तुमने किसप्रकार सत्य बताये, मुझे तो किसी दूसरेको ही देनी कर दी है। नारदजी योंहीकिसीका नाम ले रहे हैं। भुवाजी! आपने जानबूझकर मुनिके कहनेमें हमें हाँ कैसे मिला दी, तब भुवाने उत्तर दिया, पुत्री ! मैं तुझे बताती हूँ, सुन ।१२६-२७।। ___ पहले दिन अपने यहाँ एक अतिमुक्तक नामके बड़े ज्ञानवान और शास्त्रोंके पारगामी मुनि आहार लेनेके लिए आए थे । सो तेरे पिताने (भीष्मराजने) नवधाभक्तिसे मुनिको आहारदान दिया था। भोजन करनेके पीछे जब मुनिराज श्रासनपर विराजे और राजा भक्ति करने के लिए उद्यत हुआ, उस समय तू भी सामने खड़ी हुई थी। तेरी अनुपम सुन्दरताको देखकर मुनिराजने तेरे पितासे पूछा, राजन् ! यह श्रेष्ठ पुत्री किसकी है। तबराजाने जबाब दिया, महाराज यह मेरी पुत्री है। पीछे तेरे पिताने विनयसहित प्रश्न किया ।१२८-१३२॥ स्वामिन ! यह पुत्री किसकी प्राणबल्लभा होगी, जिस को देखकर मैं सुखी और कृतकृत्य बनूंगा।राजाके वचनोंको सुनकर योगीश्वरने उत्तर दिया, भाग्यवान राजन्, जो तुम्हारी पुत्रीका पति होनहार है, उसका वृत्तांत सुनो ॥जो यदुवंशियोंके कुलरूपी आकाश को प्रकाशमान करने में सूर्य के समान है, जो धरातल उपेन्द्र या नारायणके नामसेविख्यात है, जिसकी गुण सम्पदा सुप्रसिद्ध है । और जो दैत्योंके समूहका नष्ट करनेवाला है, वह तेरो लड़कीका पति होगा। मैंने जो कुछ कहा है वास्तव में सत्य समझना । इसप्रकार कहकर अतिमुक्तक मुनिराज वनमें तपश्चरण करने योग्य स्थान को चले गये। उनके उपयुक्त वाक्य मैंने निकट होकर सने थे। १३३-१३७ । Jain Education interational For Privale & Personal Use Only www.jahelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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