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अपम्न
योग धारण करके सुखसे समय विताते थे, और वर्षाकालमें वृक्षके नीचे स्थिर होकर धर्मरसका
आस्वादन करते हुए कष्ट नहीं मानते थे। इसके सिवाय वे धीर वीर गुणी, तथा योगी मुनि मुक्तावली, || चरित्र रत्नावली, द्विकावली, सिंहविक्रीड़न, सर्वतोभद्र, आदि नानाप्रकारके तप करते थे।३५-४१। उन मुनियोंने निदान चौदहवें वर्षमें पर्यकासन योगसे घातिया कर्मों का क्षय किया। और क्षपक श्रेणीपर आरूढ होकर तथा कर्मों के बड़े भारी समूहको नष्ट करके लोक अलोकका प्रकाश करनेवाला केवलज्ञान प्राप्त किया ।४२-४३। नेमिनाथ भगवानने इन तीनों केवलियोंके साथ पृथ्वीतलमें बहुत समयतक विहार किया। और भव्य जीवोंको प्रतिबोध करके जिनधर्मका प्रकाश करके. लोगोंके हृदयमें पैठे हुए मोहान्धकारको नष्ट करके, और स्वर्ग मोक्षके देनेवाले धर्मका उपदेश करके सुर असुरोंसे पूजनीक गिरनार पर्वतको अपने चरणोंसे फिर पवित्र किया। सुर, असुर, विद्याधर, भूमिगोचरी श्रादि पद पदपर उनकी वन्दना करते थे वहां पर अर्थात् गिरनार पर्वतपर अाकर वे सिद्धशिलापर विराजमान हुए और पर्यंकासन योगसे चार अधातिया कर्मों और उनकी प्रकृतियोंको नष्ट करके जन्ममृत्यु जरा रहित सिद्ध स्वरूप को प्राप्त हुए। उनके साथ शंबुकुमार, भानुकुमार और अनुरुद्धकुमार भी मोक्षको प्राप्त हो गये।४४-४८।
गिरनार पर्वतपर तीन शिखर हैं। उनमेंसे पहले शिखरको अनुरुद्धकुमारने दूसरेको, शम्बुकुमार ने और तीसरेको प्रद्युम्नकुमारने पवित्र किया। अर्थात् उक्त शिखरोंपरसे उनका निर्वाण हुअा। इसप्रकारसे गिरनार पर्वतके तीनों शिखर शोभित हुए । उक्त मुनियों के मोक्ष होनेके दिनसे ही गिरनार पर्वत सिद्धक्षेत्रके नामसे प्रसिद्ध हुआ और सुर असुरोंके द्वारा पूजा जाने लगा।४६-५१॥
श्री नेमिनाथ, प्रद्युम्नकुमार आदि मुनि जहां जहांसे मुक्त हुए थे, वहां पर इन्द्र आदि देवों ने पाकर उनके बचे हुए शरीरको (नखकेश आदिको) पवित्र चन्दनके संयोगसे दग्ध किया। इसके पश्चात् मोक्ष कल्याणको आये हुए वे सब देव पर्वतके तीनों शिखरोंपर हर्ष भक्ति और श्रद्धापूर्वक
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