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________________ प्रद्युम्न ३४८ भगवान की पूजा करके तथा गीत नृत्यादिक करके बड़ी भारी विभूतिके साथ अपने अपने स्थानको चले गये । ५२-५५। अन्तमंगल । जो केवलज्ञानसे शोभायमान हैं, जिन्हें देवगण नमस्कार करते हैं, जो निर्मल सिद्धिको प्राप्त हुए हैं, जो क्षुधा, तृषा, राग, रोष, आदि दोषोंसे रहित हैं, भाव मनका अभाव हो जाने से जिनका द्रव्यमन निश्चल है, और जो जन्म, जरा, मरण, वियोग, त्रास दिसे रहित हैं, वे अरहन्त भगवान निरन्तर मङ्गल करें और मेरे पापोंका नाश करें । ५६ । जहां आशाकी फांसी नहीं है, घर द्वार नहीं है, जन्म मृत्यु नहीं है, स्त्री, बन्धु, स्वजन, परिजन नहीं है, सुख नहीं है, दुख नहीं है, रूप वर्ण, छोटापन बड़ापन, और स्थूलता शूक्ष्मता नहीं है, उस मोक्षस्थानका आश्रय लेनेवाले अर्थात् मो प्रात हुए मुनिग मुझे सुख प्रदान करें । ५७| जिन्होंने दशवां अवतार लेकर तीर्थंकर पद पाया, जो संसार समुद्रसे तारने वाले हैं, जो यदुवंशियोंमें गुणरूपी रत्नोंके हार हुए हैं और जो कृष्णवर्ण होकर भी मोह अन्धकारका नाश करते हैं, वे श्रीनेमिनाथ भगवान शांति करें । ५८ | जन्म होते ही जिन्हें शत्रु हर ले गया, और एक विषम स्थानमें शिलाके नीचे दबा दिया गया, फिर कालसंवर विद्याधरने अपने घर लेजाकर जिन्हें पाला, तथा जवान होने पर अनेक विद्या तथा लाभ प्राप्त करके जो पुण्य प्रभाव से अपने कुटुम्बसे मिले, और अन्त में जिन्होंने मोक्ष की प्राप्ति की, वे श्री प्रद्युम्न कुमार हमको विपुल सौख्य देवें । ५९ | श्रीकृष्णनारायण के पुत्र और प्रद्युम्नकुमार के अनुयायी श्रीशम्बुकुमार भी जो कि केवलज्ञान प्राप्त करके गिरनार पर्वतके शिखर से मोक्षको सिधारे, मेरे पापोंको नष्ट करें ।६०। प्रद्युम्न कुमारके रूपवान पुत्र अनुरुद्धकुमार जिनके गुणोंकी उत्कृष्ट कीर्ति देवोंने भी संसार में विख्यात की, और जिन्होंने गिरनार पर्वत के शिखर को अपने मोक्षगमन से प्रसिद्ध किया, मुझे Jain Education International For Private & Personal Use Only चरित्र www.ainelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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