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प्रद्युम्न
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नारायण भयसे व्याकुल होते हुए नगरीमें गये और सब लोगोंसे बोले, जो जहां कहीं जाकर अपने जीवन की रक्षा कर सकें, वह वहां चला जावै । यहां कोई रहेगा, तो उसका अवश्य ही विनाश होगा ।२५-२७।
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शम्बुकुमार सुभानुकुमार तथा प्रद्युम्नका पुत्र अनुरुद्धकुमार ये तीनों नारायण बलभद्रके वचनोंसे प्रतिबोधित हो गये । सो उसी समय नेमिनाथ भगवानके चरण कमलों को शरीर से तथा वचनसे नमस्कार करके गिरनार पर्वतपर चले गये और वहां अपने हाथोंसे मस्तक के केश उखाड़कर तथा लोकदुर्लभ वस्त्राभूषण उतार करके उन्होंने वैराग्यपूर्वक अतिशय उज्ज्वल चारित्र धारण कर लिया २८-३०। इसके पश्चात् द्वीपायनमुनिके अशुभ तैजस शरीरके निकलनेसे द्वारिकाके जलनेका तथा जरत्कुमारके वाण से श्रीकृष्णजीके मरने आदिका जो वृत्तान्त हुआ है, सो सब श्री ' हरिवंशपुराण" में विस्तार से कहा है । हमने यहांपर उसे असुन्दर तथा दुःखकर समझके नहीं लिखा है। वहां श्री शम्बुकुमार आदि तप करनेमें तत्पर हुए। आर्तध्यान तथा रोद्रध्यानको छोड़कर वे धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान में लवलीन थे और नानाप्रकारके तप करते थे कि, इतनेही में श्रीनेमिनाथ भगवान विहार करके गिरनार पर्वत पर गये । सो उन तीनोंने उनके हाथसे फिर दीक्षा ग्रहण की। और छह प्रकारका अन्तरंग तथा बारह प्रकारका बाह्य तप ग्रहण किया । ३१-३४ |
वे गुणोंके घर, शीलोंकी लीलासे प्रकाशमान, और इच्छारहित मुनि दुस्सह तप करने लगे । जहाँ सूस्त होजाता था, वहां पर प्रासुक भूमि देखकर विराजमान हो जाते थे अर्थात् रात्रिको कहीं मन नहीं करते थे | और जैन मुनियोंकी सम्पूर्ण क्रियाओं का पालन करते थे । हेमन्त ऋतु अर्थात् जाड़े के दिनों में बाहर खुली जगह में अथवा वायु और शीतके स्थानमें स्थिर रहकर वे वैरागी मुनि रात व्यतीत करते थे, ग्रीष्मऋतु में जब लोग पसीने से व्याकुल होते हैं पर्वत के मस्तकपर चढ़कर
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