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प्रथम्न
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लड़ते झगड़ते हुए, जमीनपर लोटते हुए, बाल विखराये हुए और एक दूसरेके कानमें लगकर झूठी बड़बड़ करते हुए वे सबके सब द्वारिकाकी ओर चले। जिस समय द्वारिकाके द्वारपर पहुंचे, उस समय || चरित्र उनकी दृष्टि वहां पर विराजमान हुए क्षीण शरीर मुनिराजपर पड़ी सो दैवयोगसे उन सबने उन्हें शीघ्र ही पहचान लिया। श्रोनेमिनाथ भगवानके वचन स्मरण करके कि इस मुनिके द्वारा द्वारिका भस्म होगी, वे क्रोधसे उन्मत्त हो गये ।७-१६। और लाल अांखे करके बोले, नेमिनाथने द्वारिकाका जलानेवाला जिसे बतलाया था, वह यही है इसलिये इस दुराचारीको द्वारिकाका कुछ अनिष्ट करनेके पहिले ही मार डालना चाहिये । ऐसा कहकर उन दुष्टोंने पत्थर मारना शुरु किया, सो तब तक मारा, जब तक द्वीपायन मुनि जमीनपर नहीं गिरे। परन्तु इतना कष्ट सहनेपर भी मुनिने जरा भी क्रोध नहीं किया। अपने परिणामोंको सम्हालकर शान्त हो रहे। राजकुमार इतनेपर भी नहीं माने उन्होंने मुनि के मस्तकपर मातंगसे (चाण्डालसे) पेशाब करवाई ।१७-२०। उस नीच कृत्यसे मुनिराजको बड़ा ही क्रोध आया। पत्थरोंकी चोटसे वे पृथ्वीपर गिर पड़े थे। और प्राण कंठगत हो रहे थे। उन्हें ऐसी अवस्थामें छोड़कर राजकुमार नगरीको चले गये ।२१॥
इस अनर्थकी खबर श्रीकृष्ण तथा बलभद्र के पास पहुँची। सुनते ही वे शीघ्र ही वहां दौड़े हुए आये, जहां द्वीपायन मुनि पड़े हुए थे। उन्हें भक्तिपूर्वक नमस्कार करके वे बोले, हे भगवन् ! हम लोगोंसे जो कुछ हीनकर्म हो गया है उसके लिये क्षमा करो! क्षमा करो। आप क्षमाके धारण करनेवाले योगीन्द्र हैं, इसलिये हे प्रभो ! मूर्ख बालकोंने जो कुछ दुष्कर्म किया है, उसके लिये क्षमा करो।२२-२४। यह सुनकर द्वीपायन मुनिने दो अंगुलियोंके इशारेसे बतलाया कि सारी द्वारिकामें तुम दोनोंको अर्थात् श्रीकृष्ण और बलभद्रको छोड़कर कोई नहीं बचेगा, सब भस्म हो जायेंगे। मुनिके नेत्र क्रोधके कारण लाल हो रहे थे। उससे उनके चित्तकी दुष्टताको समझकर बलभद्र और
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