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पपम्न
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गये ।।३.१००। तदनन्तर योगिराज श्रीप्रद्युम्नकुमार जो कि अनेक देवोंसे अथवा विद्वानोंसे घिरे हुए थे, श्रीनेमिनाथ भगवानके साथ विहार करनेके लिये चले और पल्लव देशमें जाकर पहुँचे । उनके || चरित्र साथ रुक्मिणी अर्जिका भी अपनी पुत्रवधू और राजीमती सहित उक्त देशमें पहुँची। शीलवती रुक्मिणी और उसकी बहू एकादक श्रुतज्ञानकी धारण करनेवाली होगई थीं। नेमिनाथ भगवान बड़े भारी संघके साथ विहार करने लगे। यहां पर एक दूसरी कथाका सम्बन्ध है:-१-३॥
द्वीपायन मुनि जो कि अन्य देशको चले गये थे जितनी अवधि बतलाई थी, उतनी बीती हुई जानकर द्वारिकाको देखनेकी इच्छासे और यदुवंशियोंसे यह कहने के लिये कि, अब तुम्हें डर नहीं रहा, लौट आये। उन्होंने भूलसे समझ लिया कि, बारह वर्ष बीत चुके हैं। परन्तु यथार्थमें उस समय बारह वर्ष पूरे होनेमें कुछ दिन बाकी थे।४-६।
ग्रीष्मऋतुका समय था । द्वीपायन मुनि यादवोंको अपना तप दिखाने के लिये द्वारिका नगरी के बाहर एक शिलापर विराजमान हो रहे थे। दैवयोगसे उस दिन यादवोंके शम्बुकुमार, भानुकुमार
आदि पुत्र गिरनार पर्वतपर क्रीड़ा करनेके लिये गये थे। वहां ग्रीष्मके तापमें तपनेसे उन्हें प्यासने ऐसा सताया कि वे जलकी खोजमें चारों ओर भ्रमण करने लगे। जिस समय नेमिनाथ भगवानने द्वारिका के नष्ट होनेकी बात कही थी, उस समय लोगोंने राजाकी आज्ञासे जो शराबके बर्तन फेंक दिये थे, वे पर्वतकी एक खोहमें पड़े थे वर्षा ऋतुमें जब पानी बरसता था, तब वे जलसे भर जाते थे। और उनमें वृक्षोंके नानाप्रकारके फूल हवाके झकोरोंसे झड़कर पड़ा करते थे और सड़ते रहते थे। इससे वह जल समय पाकर शराबके समान उन्मत्त करने वाला हो गया था! प्याससे व्याकुल हुए राजपुत्रों ने कुछ भी न सोचकर वह जल पी लिया। जिससे थोड़ी देरमें वे सबके सब मतवाले हो गये । उनके नेत्र नशे के मारे लाल लाल हो गये । नानाप्रकारके गीत गाते हुए, झूठा बकवाद करते हुए, परस्पर
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