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________________ प्रद्युम्न २३५ आपके साथ रहकर सुख भोगें और आपके प्रसादसे नेमिनाथभगवानकी वन्दना करें । परन्तु हे प्रभो ! यह संसार असार है । इसका स्वरूप समझकर इसे छोड़ दीजिये । हम सब जिसका जय नहीं हो सकता है, ऐसे विभूतिमें मत्सर हुए रागको छोड़ करके, काम शत्रुको नष्ट करके, स्वरूपमें चित्तको लगा करके और श्रीमति राजीमती के निकट शुद्ध एक वस्त्रको धारण करके आर्यिकाओंका उत्कृष्ट तप करेंगी ।७६-८६ । इस प्रकार शांतता के साथ वैराग्यके वचन सुनकर प्रद्युम्न कुमार बहुत संतुष्ट हुए । उन्होंने अपनी स्त्रियोंसे छुटकारा पाकर मानों उसी समय समझ लिया कि, हम संसाररूपी पिंजरे से निकल आये । जिन बहुत से राजपुत्रों को प्रद्युम्न ने स्वयं अपने साथ रखकर बालकपनसे बड़े किये थे, उनके साथ हाथी पर आरूढ़ होकर वे घर से निकल पड़े। नगर के लोगोंने उन्हें बड़े प्रमसे देखा । नानाप्रकार के वाक्योंसे वे सब उनकी प्रशंसा करने लगे । कोई बोला कि, सर्व शत्रुओं का मर्दन करने वाला श्री कृष्ण नारायण सरीखा जिसका पिता है, तीन लोककी सुन्दरी स्त्रियोंके रूपको जीतनेवाली जगत्प्रसिद्ध रुक्मिणी महाराणी जिमकी माता है, सौराष्ट्र देशका इन्द्रके समान जिसका राज्य है, देव दुर्लभ और उपमारहित जिसका रूप है, रूप तथा लावण्य से भरी हुई सुलक्षणा तथा कला विज्ञानकी जाननेवाली जिमकी अनेक स्त्रियां हैं वह प्रद्युम्न कुमार इस प्रकार सम्पूर्ण सुखोंके उपस्थित होते हुए भी तपस्या करने को उद्यत हुआ है, सो अब इससे अधिक क्या चाहता है ? ८७६२। यह सुनकर कोई चतुर पुरुष बोला, सुनो, यह सम्पूर्ण शास्त्रों का पारगामी प्रद्युम्नकुमार कृत्रिम सुखों को छोड़कर लोकातीत, सारभूत, और जन्म जरा मरणरहित, मोक्ष प्राप्त करनेकी इच्छा से तप करनेको उद्यत हुआ है। इसका हृदय वैराग्यसे शोभायमान होरहा है। अविनाशी सुखके पानेकी वांछा कर रहा है । इसप्रकार परस्पर वार्तालाप करते हुये लोग प्रद्युम्न कुमार से बोले “हे गुणसागर ! जयवंत होओ ! चिरकाल तक जियो ! For Private & Personal Use Only Jain Education International चरित्र www.jattelbrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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