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________________ ३३४ । विषयोंमें विह्वल रहकर आखिर वह मौतके मुंहमें जा पड़ता है । स्त्रियोंके लिये धनकी आवश्यकता होती है और धन पानेकी इच्छासे लोग ऐसे युद्ध में भी प्रवेश करनेसे नहीं डरते हैं, जो हाथी, घोड़ों | और रथोंसे सघन होता है तथा जिसमें रक्तकी नदियाँ बहती हैं । धनके लोभसे अनेक लोग व्याघ्र सिंह आदि हिंसक जानवरोंसे भरे हुए भयंकर वनोंमें तथा विंध्याचल जैसे पर्वतोंमें प्रवेश करनेमें नहीं हिचकते हैं। और उसी धनके लिये जो कि स्त्रियों के लिये आवश्यक होता है, लोग अत्यन्त गहरे तथा मच्छकच्छ आदि जीवधारियोंसे भरे हुए समुद्र में भी प्रवेश करते हैं। अधिक कहनेसे क्या ? सारांश यह है कि, ऐसा कोई भी दुष्कर कर्म नहीं है, जिसे मनुष्य, स्त्री और धनके लिये नहीं करता है ।६९-७३। तुम्हारे सबके साथ मैंने निरन्तर अनेक प्रकारके भोग भोगे, तो भी उनसे तृप्ति नहीं हुई। ऐसी अवस्थामें जब कि विषय तृप्ति ही नहीं होती है, अधिक अधिक अभिलाषा बढ़ती है, घरमें किसलिये रहूँ, अब मैं जिनेन्द्रभगवानके तपोवन में जाना चाहता हूँ । सो तुम सबको मुझपर क्षमाभाव धारण करना चाहिये। मेरी सबके प्रति क्षमा है ।७४ ७५। . प्रद्युम्नके इस प्रकार गगरहित वचन सुनकर रति आदि रानियां दुःखके मारे व्याकुल हो गईं । संसारसे किंचित् विरक्त होकर और विनयपूर्वक हाथ जोड़कर वे बोलीं, हे नाथ ! आप ही हम सबके शरण हैं । आप ही हमारे आश्रयभूत हैं, और आप ही हमारे मित्र तथा हितकारी बन्धुवर्ग हैं । सुख दुःख जो कुछ है, हम सब आपके साथ हो भोगनेवाली हैं। जब आपके साथ हमने भोग भोगे हैं, तब आपके ही साथ दीक्षा लेकर पवित्र तप भी करेंगी जिसके प्रभावसे हे विभो ! देवलोकमें उत्पन्न होवेंगी, और आपके प्रभावसे वहांके अपूर्व सुख भोगेंगीं। हे नाथ आप प्रसन्नतासे कर्मों का विनाश करनेवाली जिनदीक्षा ग्रहण करें। आपके साथ हम भी जिनभगवानके दिये हुए व्रत ग्रहण करती हैं । और यदि भोगोंमें लुब्ध होकर हे राजन् आप घरमें रहना चाहें, तो रहिये, हम भी Jain Educa international For Private & Personal Use Only www.icelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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