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थे और प्रत्येकने बत्तीस २ श्रेष्ठ स्त्रियां विवाही थीं। भगवानका उपदेश सुनकर उक्त युवाओंको ऐसा ___ प्रद्युम्न ||
| वैराग्य हुआ कि सबोंने तत्काल ही जिनदीक्षा ले ली। पठन पाठन ध्यान, योग, पारणा, प्रोषध आदि ३२० सब ही कार्य वे छहों भाई एक साथ करने लगे।६८-७५।
उनको संबोधित करके जिन भगवान फिर रैवतक पर्वतपर आगये । साथ ही श्रीकृष्ण श्रादि यदुवंशी पुरुष और उनकी सत्यभामा आदि स्त्रियां भी समवसरणमें आई। भगवानको नमस्कार करके
और भक्तिपूर्वक पूजा करके वे सब मनुष्य देव असुर आदि अपने २ कोठोंमें यथास्थान बैठ गये। उस समय जिनराजने भव्यरूपी प्यासे चातकोंके लिये धर्मके स्वरूपका निरूपण किया, जिसे सुनकर सब ही लोग सन्तुष्ट हुए । अवसर पाकर देवकी महाराणीने जो कि एक घटनासे विस्मित हो रही थीं, बड़ी विनयके साथ पूछा, हे भगवन् ! आज मेरे घर दो मुनि आये थे, सो उन्होंने विधिपूर्वक कई बार अाहार लिया। वे दोनों मुनि एक ही दिन मेरे घर तीन बार भोजनके लिये आये और मैंने उन्हें पुत्रके मोहसे भक्तिके साथ तीन ही बार भोजन करा दिया। सो जिनभगवानके शासन में जो दिगम्बर मुनि हो जाते हैं, क्या वे एक ही दिनमें कई बार आहार लेते हैं ? इसके जवाबमें भगवानने कहा कि दिगम्बर मुनि बार बार भोजन नहीं करते हैं, यह ठीक है, परन्तु तुम्हारे यहां जो तीन बार भोजन को आये, वे जुदे जुदे तीन युगल मुनि थे। और यथार्थ में वे छहों भाई हैं, जिनकी जन्मके समय देवोंने ले जाकर उनकी रक्षा की थी। भगवानकी बाणी सुनकर देवकी महाराणीने कुटुम्ब सहित उठकर छह मुनियोंको नमस्कार किया ७६-८६। भगवानकी वाणीसे मुनियोंका सब सन्देह दूर हो गया। माता और छहों बेटे परस्पर अपनी २ वार्ता करने लगे। श्रीकृष्णजीके सगे भाइयोंको (मुनियोंको) देखकर सम्पूर्ण यादव प्रसन्न हुए। उस संगममें बड़ा भारी हर्ष हुअा।८७-८८।
तत्पश्चात् सत्यभामा प्रादि पाठों पटरानियोंने अपने २ पूर्वभवोंका वृत्तांत पूछा और तदनुसार |
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