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________________ चरित ३१६ | स्थानको चले गये । इसीप्रकारसे सब यदुवंशी भी जिनभगवानको प्रणाम करके द्वारिका नगरीको लौट गये और जिनधर्ममें रत हो गये। जिनभगवानकी चर्चा करते हुए अगणित भव्यजीव प्रतिदिन आते थे और उन्हें नमस्कार करते थे ।५६-५८। इसके अनन्तर श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर रैवतक पर्वतसे विहार करनेके लिये उतरे। उनके साथ देव और असुरोंका समूह भी चला। जिस समय भगवान चलते थे, उस समय उनकी भक्तिकी प्रेरणासे वायुकुमार श्रागे २ तृण तथा कांटोंको उड़ाते जाते थे और मेघकुमार गन्धोदककी वर्षा करते थे। जहां जहां भगवानके चरण पड़ते थे वहां २ देवगण सोनेके कमलों की रचना करते थे। जिस स्थानमें भगवान गमन करते थे, उसके चारों ओर आठसौ कोशतक सुभिक्ष रहता था, अर्थात् कहीं अकाल नहीं पड़ता था। किसी जीवका घात नहीं होता था। शीत, आताप, पीड़ा, छोटे छोटे उपद्रव आदि कुछ भी नहीं होते थे। जहां जहां जिनेन्द्रदेव चलते थे, देवगण अागे आगे जय जय शब्द करते जाते थे। शालि अादि धान्योंसे पृथ्वी खूब हरी भरी सोहती थी, सब दिशायें निर्मल रहती थीं। मन्द सुगन्ध पवन चलती थी इन्द्रकी आज्ञासे देवगण सम्पूर्ण लोगोंको जिनेश्वरकी वन्दनाके लिये बुलाते थे। आगे २ पापका क्षय करनेवाला, जिनधर्मका प्रभाव प्रगट करनेवाला और मिथ्यात्वको नष्ट करनेवाला धर्मचक्र चलता था ।५६-६७) इस प्रकारसे जिनेन्द्रदेवका सारी पृथ्वीमें विहार हुा । जहां २ उनका गमन होता था, वहां वहां वे कल्याणकारी उपदेश देते थे। महाराष्ट्र, तैलंग, कर्णाटक, द्रविड़, अंग, बग (बंगाल), कलिंग, सूरसेन, मगध (बिहार), कनूज (कन्नोज), कुंकण (कोंकण), सौराष्ट्र (सोरठ), उत्तर, मालवा, गुजरात, पांचाल (पंजाब) और महेश्वर आदि अनेक देशोंको संबोधित करके वे भदिलपुर नगरमें पधारे वहां अलकाके घरमें वसुदेव महाराजके तीन युगल (जोड़ी) अर्थात् छह लड़के थे, जिन्हें कंसके उपद्रवके मारे देव रख आये थे। भगवानके वहां पहुँचनेपर वे भी समवसरणमें आये। ये छहों लड़के युवा Jain Educatie intemational For Private & Personal Use Only www.jagelibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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