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चरित्र
___ प्राम्न
সনে
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जिनभगवानने उन सबके भवोंका वर्णन किया। उन्हें सुनकर सब यादव लोग सन्तुष्ट हुए और फिर अपने २ घर चले गये जिनेन्द्र भगवान भी फिरसे विहार करनेके लिये निकले । और अनेक देशोंको सम्बोधित करनेमें तथा भव्यजीवोंको मोक्ष प्राप्तिके लिये जिनदीक्षा देनेमें तत्पर हुए।८९-९१।।
जो भव्यजीव जिनेश्वर भगवानका यह पवित्र चरित्र प्रादरपूर्वक सुनते हैं, जिसमें कि विवाहादि महोत्सवोंकी चर्चा की है, और निर्मल वैराग्य, दीक्षा, ध्यान, केवलज्ञान तथा देशना (उपदेश) आदिका वर्णन है उनके घर में निरन्तर ही सोमता, विद्वत्ता चतुराई निवास करती है ।१९२। इति श्रीसोमकीर्ति आचार्यकृत प्रद्युम्नचरित्र संस्कृतग्रन्थके नवीन हिन्दी भाषानुवादमें श्रीनेमिनाथका विवाह, वैराग्य, दीक्षा, ज्ञान, समवसरण, देशना, विहारादिका वर्णनवाला तेरहवां सर्ग समाप्त हुआ।
अथ चतुर्दशः सर्गः। श्रीनेमिनाथ भगवान पल्लव देशमें विहार करके उज्जयन्तगिरी अर्थात् गिरनारपर्वतपर फिर पधारे। सुर और असुर जिनको नमस्कार करते थे, उन तीर्थंकर देवके आने पर कुबेरने इन्द्रकी प्राज्ञा से समवसरणकी फिर रचना की । सर्वज्ञ भगवान वहां विराजमान हो गये हैं, ऐसा जानकरके भक्तिके भारसे झुका हुवा और मस्तकपर हाथ रखके नमस्कार करता हुआ इन्द्र तत्काल ही वहाँ पहुँच गया। इसी प्रकारसे उन्हें अाया हुआ जानकर श्रीकृष्णजी भी बन्दनाके लिये चले। अपने नगरमें उन्होंने इस बातकी घोषणा करा दी कि, भगवान पाये हैं । उनके साथ प्रद्युम्नकुमार शम्बुकुमार भानुकुमार
आदि बहुतसे यदुवंशी राजा चले, तथा सत्यभामा आदि सब रानियां भी अपनी अपनी पालकियोंमें बैठकर चलीं ।१.५।
तुरही के शब्दोंसे दिशाओंको गुंजायमान करते हुए, हाथियोंके मदजलसे पृथ्वीको प्लावित करते हुए घोड़ोंकी टापोंसे उठी हुई धूलको सब दिशाओंमें उड़ाते हुए, छत्रोंसे संसारके सघन अाताप
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