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प्रद्युम्न
चरित्र
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श्रीनेमिनाथ योगी ध्यानमें स्थिर हो रहे । उन्होंने आत्मामें श्रात्माका ध्यान करते हुए क्षपकश्रेणी पर
आरोहण किया। और उस ध्यानके प्रभावसे जल्द ही घातिया कर्मों को नष्ट कर दिया । ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय और अन्तराय कर्मों का विनाश होते ही लोक और अलोकका प्रकाश करने वाला केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। यह ध्यानस्थ होनेके ५६ दिन पीछे हुआ।१२-१३॥
केवलज्ञानके प्रभावसे इन्द्रोंके आसन कम्पायमान हुए। उससे उन्होंने जान लिया कि, श्रीनेमिनाथ भगवानको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ है । अतएव वे विमानोंपर तथा नानाप्रकारके बाहनोंपर अारोहण करके दुन्दुभीके शब्दोंसे दशोंदिशाओंको पूरित करते हुए, फूलोंकी वर्षा करते हुए और देवांगनाओंका नृत्य कराते हुए रैवतक पर्वत पर आये ।१४-१६। तब तक इन्द्रकी आज्ञासे कुवेरने सर्व लक्षणोंसे लक्षित और मनके हरण करनेवाले समवसरणकी रचना की। पहले पृथ्वीसे पांच हजार धनुष ऊपर एक लम्बी चौड़ी पीठिका बनायी जिसकी भूमिका वज्रकी बनी हुई थी, और जिसके चारों
ओर बीस हजार सीढ़ियां थी। इस पीठिकाके ऊपर रत्न सुवर्ण ग्रादिसे बने हुए तीन प्राकार अर्थात् | कोट थे, और चार मानस्तम्भ थे। इनके सिवाय खाई, पुष्पवाटिका (बागीचा) नाटकशाला, वन, वेदिका, भवन और निर्मल जलसे भरे हुए सरोवर थे पीठिकाके ठीक बीच में एक तीन सिंहासनोंवाला कल्याणरूप सिंहासन था, जिसके चारों ओर अशोकवृक्ष आदि पाठों प्रतिहाय थे। निग्रन्थमुनि तथा श्रावक श्रादिसे भरे हुए बारह कोठे थे। और बहुतसे स्तूप थे वहांकी सब पृथिवी रत्नमयी थी। सिंहासन के ऊपर जिनेन्द्र भगवान विराजमान थे। उनके ऊपर ६४ चवर दरते थे और मस्तकपर तीन छत्र शोभायमान थे। सुर और असुर उनकी वन्दना करते थे और उनके ब्रह्मदत्त आदि ग्यारह गणधर थे। इसप्रकार इन्द्रकी आज्ञासे समवसरण की रचना हुई ।१७-२५। ___ श्री जिनभगवानको केवलज्ञान हुआ है, ऐसा सुनकर द्वारावतीके समस्त लोग वन्दनाके लिये आये।
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