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________________ चरित्र ओर चले । इधर जब राजमतीने सुना, तब वह भी पदपद पर नानाप्रकारसे अाक्रन्दन करती हुईविलाप करती हुई पीछे २ चली।९५-१००। जिन भगवानने रैवतक पर्वतपर पहुँचकर उसे सब बोरसे देखा, फिर सहस्रास्रवनमें जाकर उन्होंने महान साहस किया। अर्थात् मस्तकके सारे केशोंको उन्होंने पांच मुट्ठियोंसे लोंचकर उखाड़ लिया और “नमः सिद्ध भ्याः" ऐसा कहकर सम्पूर्ण प्राभरणादिक छोड़ दिये । सुर असुरगण धन्य २ कहकर स्तुति करने लगे। इसप्रकार जिनेन्द्रदेव मुनींद्र हो गये, और ध्यान लगाकर एक स्थानमें स्थिर हो रहे । उनके साथमें एक हजार राजाओंने भी दिक्षा ले ली। वे भी सब मुनि होकर तप करने लगे ।१-३। भगवानने जो मस्तकके केश उखाड़े थे, उन्हें इन्द्रने क्षीरमागरमें ले जाकर गिराये। इस प्रकार तीसरा तपकल्याणक करके इन्द्र अपने स्थानको चला गया ।।। जिन भगवानने तीसरे दिन ध्यानसे उठकर और द्वारिकामें श्राकर ब्रह्मदत्तके यहां पारणा किया। खीरके भोजनसे विधिपूर्वक पारणा हो जानेसे देवोंने ब्रह्मदत्तके घर यथाक्रमसे पांच आश्चयों की वर्षा की। इसके पश्चात् योगिराज भगवान रैवतकपर्वतपर लौट आये और फिर घातिया कर्मों का क्षय करनेके लिये ध्यान लगाकर विराजमान हुए ।५.७। उधर विलाप करती हुई और नेमिनाथका ध्यान करती हुई राजीमती अपने घरको लौटी! जब वह देख चुकी कि, भगवान दीक्षित हो गये, तब उसने भी अपने मनमें संयम लेनेका स्पष्ट निश्चय कर लिया। घर आनेपर उसे पिताने समझाया कि, बेटा! अब तू दुःख मत कर । मैं किसी दूसरे राजाके साथ तेरा पाणिग्रहण करा दूंगा। परन्तु राजीमती बोली, पिता ! मैं श्रीनेमिकुमारको छोड़कर दूसरे पुरुषको आपके समान समझती हूँ अर्थात् और सब मेरे पिताके तुल्य हैं। नेमिकुमारके सिवाय मेरा कोई पति नहीं हो सकता। यह सुनकर उग्रसेन दुःखी होकर रह गये । राजीमति भी नेमिनाथका ध्यान करती हुई दिन व्यतीत करने लगी।८-११। उधर Jain Educate temational For Private & Personal use www.jabrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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