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________________ करने लगे कि 'यह गृहबन्धन-गृहस्थमार्ग पापका कारण है। ये जीवोंके घात करनेवाले दुष्ट लोग इस हिंसा कर्म से उस नरकमें पड़ेंगे, जहां कि बड़ी भारी वेदना होती है । इस निरपराधी पशुओंको | जो बेचारे जंगलोंमें रहते हैं, और घास खाकर अपना समय व्यतीत करते हैं, ये क्यों मारते हैं । जो शूरवीर कांटे न लग जावे, इस भयसे पैरोंकी रक्षाके लिये जूते पहनते हैं, वे ही पापी दयारहित होकर अपने बाणोंसे जीवोंको कैसे मारते हैं, ? इस उत्सवसे जान लिया कि, विवाहका फल संसार बढ़ाना है। पापोंके प्रारंभ करनेवाले असार संसारको धिक्कार है।८६१०' ऐसा विचार करके श्रीनेमिकुमारने स्थको चलाया और जितनेपशु बाड़ेमें घिरे हुए थे, जाकर उन सबको ही छोड़ दिया। श्रीनेमिनाथको जाते हुए देखकर लोग बहुत अाकुल हुए। श्रीनेमिनाथ वहांसे चलकर लौकान्तिक देवोंके साथ द्वारिकामें पहुँच गये अर्थात् उसी समय लोकान्तिक देव भी अपने नियोगकी पूर्तिके लिए आ गये । भगवानको चलते समय श्रीकृष्णजी ने बहुत रोका कि, हे महाबल ! ठहरो, और विवाह करो ! जिसमें मेरा कलंक मिट जावे । माता पिता ने भी इसीप्रकारसे बारम्बार रोका। परन्तु कुछ फल नहीं हुआ। भगवान उन सबको सम्बोधित करके सिंहासनपर विराजमान होगये ।।१-६४। भगवानके वैराग्यसे इन्द्रका आसन कम्पायमान हुआ इसलिये वे भी जिनभक्तिके प्रेरित हुए द्वारिकामें आये और उन्होंने बड़े भारी उत्सव के साथ भगवानका अभिषेक किया, सुगन्धित मलयागर चन्दनसे अनुलेपन किया, कल्पवृत्तोंके पारिजातादि फूलोंसे पूजन किया, और सैकड़ों स्तुतियोंसे स्तवन किया। इसके पश्चात् सोलह प्रकारके आभरणोंसे शोभायमान श्री जिनेन्द्रभगवान स्वयं चलकर शिविकामें (पालकीमें) आरूढ़ हुए। उस पालकीको पहले तो सात पैंड तक राजा लेकर चले और फिर देवगण आकाशमार्ग से ले गये द्वारावतीके लोग तथा और भी जो विद्याधर तथा भूमिगोचरी थे, वे सब शिविकाके पीछे पीछे रैवतक पर्वत अर्थात् गिरनार पर्वतकी www. Jain Educ For Private & Personal Use Only library.org international
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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