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________________ प्रद्युम्न चरित्र किया। इसके पश्चात् वे नानाप्रकारके वाहनोंके सहित बारातकेसाथ हो लिये। शिवादेवी, देवकी, रोहिणी, सत्यभामा, रुक्मिणी, श्रादि सब रानियोंने द्वारिकामें ही सब मंगल विधान किये अर्थात् वे बरातके साथ नहीं चलीं। जिस समय मंगल आरती उतारी जारही थी, उसममय शिवादेवीकी अोढ़नी दीपकसे लगकर जलने लगी मानो सबको रोकनेके लिये ही वह जलने लगी कि, यह महोत्सव मत करो।७०-७४। इसी प्रकारसे जब श्रीनेमिकुमार स्थपर आरूढ़ हुए तब बिल्ली रास्ता काटकरके आगे चली गई। परन्तु यह अपशकुन जानकर भी वे ठहरे नहीं, चल पड़े । चलते समय बाजोंके घोषसे, बन्दी जनोंके जय २ शब्द से और सुहागिन स्त्रियोंके मंगल गीतोंसे बड़ा हो कोलाहल हुअा। वरके साथ साथ समुद्र विजय, वसुदेव, बलदेव, श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न, भानु, सुभानु आदि अनेक राजा चलने लगे। जव तोरण के समीप पहँचे, तब नेमिकुमार याचकजनोंको यथेच्छ दान देने लगे। उस समय झरोखेमें बैठी हुई राजी मतीने उन्हें देखा । उसकी सखियोंने बतलाया कि, जिनके ऊपर छत्र चमर दुर रहे हैं वे ही श्रीनेमिकुमार हैं।७५-७६। तोरणके दाहिने और बांयें औरके स्थानोंमें अनेक पशु बंध रहे थे। वे अतिशय दीनतासे भरे हए शब्द करते थे। नेमिकुमारको भी उनके शब्द सुन पड़े। उसीसमय बहुतसी स्त्रियां उग्रसेनके महलसे मंगल कलश लिये हुए कोई उचित क्रिया करने के लिये आई थीं। जीवोंके शब्द सुनकर दया. मूर्ति नेमिकुमारने यहां वहां देखकर सारथीसे पूछा, राजाने यह जीवोंका समूह किस कारण बांध रक्खा है ? मुझे शीघ्र बतलायो । सारथी बोला हे नाथ ! सुनो ये सब पशु आपके लिये तथा आपके विवाहके लिये इकट्ठे किये गये हैं ! अाज अाधी रातको ये सब मारे जावेंगे। और सबेरे आपके सत्कारके लिये इनका भोजन तैयार किया जावेगा, जिसको सब यादव लोग खावेंगे। ये सब श्रीकृष्ण जीकी आज्ञासे बांधे गये हैं।८०.८५। सारथीके वाक्य सुनकर श्रीनेमिकुमार अपने हृदय में चिन्तवन Jain Educe international For Privale & Personal Use Only www. l ibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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