SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धन्न · ३१२ बोले, हे माता ! श्रीनेमिकुमारजी जवान हो गये हैं, विवाहके योग्य हो गये हैं, तुम अभी तक उनका विवाह क्यों नहीं करती हो ? इसका क्या कारण है ? शिवादेवीने उत्तर दिया, हे जनार्दन हमारे वंश तो तुम्हीं सबसे प्रधान हो, फिर इस विषय में मुझसे क्या पूछते हो ? यह सब कर्तव्य तो तुम्हारा ही है । यह सुनकर नारायण अपने महलको लौट आये । ५८-६१ । महल में आकर श्रीकृष्णजीने पहले बलदेवजी के साथ इस विषय में विचार किया और राजा उग्रसेनके यहां जाकर उनसे उनकी श्रेष्ठ कन्या की मँगनी की । फिर वहाँपर कुछ कपट रचकर वे अपने arrata, तथा नेमिनाथ भगवान के विवाहका उत्सव करने लगे। उसी समय उन्होंने समस्त यदुवंशी और भोजवंशी आदि राजाओं को बुलवाया, सो वे सब अपनी अपनी स्त्रियों के सहित द्वारावती नगरी में पहुँचे । ६२-६४। जगह जगह यादवोंकी स्त्रियां नृत्य करने लगीं, तब वितत यदि बाजों के समूह जगह २ बजने लगे, घर घर विचित्र २ प्रकार के बंधनवारे बँध गये और मंडप खड़े हो गये । ऐसा कोई भी घर नहीं दीखता था, जिसमें कुछ उत्सव न होता हो । श्रीनेमिकुमार का मर्दन उबटन करके स्नान कराया गया और फिर स्त्रियोंने उन्हें नाना प्रकार के शृंगार कराये, और मंगलगीत गाये । ६५-६७। वहां उग्रसेन महाराजके घर भी खूब उत्सव होने लगे । उन्होंने भी अपने स्वजनबन्धुयोंको बुलाये, मो वे सब जूनागढ़में या पहुँचे । इस तरह दोनों घोर प्रानन्द ही श्रानन्द दिखने लगा । जिसमें श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर सरीखे वर और त्रैलोक्यसुन्दरी राजीमती सरीखी कन्या है, उस विवाह उत्सवी और अधिक प्रशंसा क्या की जावे ? | ६८-६९ | तदनन्तर उग्रसेनने वरको लिवानेके लिये उत्तम २ सवारियां लेकर अपने बहुत से अच्छे २ aria उत्तमोत्तम भूषणोंसे सज धज करके भेजे । सो वे सब आनन्दके साथ समुद्रविजय के घर पर पहुँचे । उनका यादवोंने खूब सत्कार किया और यादवोंकी स्त्रियोंने उन्हें गायन भोजनादिसे प्रसन्न Jain Educan International For Private & Personal Use Only चरित्र www.telibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy