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________________ चरित्र | समय तक हास्य किया और हावभावपूर्वक जल क्रीड़ा आदि लीलायें की। अन्तमें श्रीनेमिकुमारने वापिकासे निकलकर अपनी जलसे भीगी हुई धोती उतार दी और जाम्बुवती से कहा, हे देवी ! तुम यह मेरी धोती निचोड़ दो। इससे जांबुवती बड़ी रुष्ट हुई। वह बोली, तुम बड़े मूर्ख हो, तुम्हें मुझ पर ऐसी आज्ञा नहीं चलाना चाहिये क्योंकि मैं श्रीकृष्णमहाराजकी रानी हूँ । यदि इसप्रकार आदेश करनेकी तुम्हारी इच्छा रहती है, तो किसी उत्तम कन्याकी मँगनी करके विवाह क्यों नहीं कर लेते हो ! ऐसा काम करनेकी आज्ञा तो मुझे मेरे स्वामी भी कभी नहीं देते हैं जो तीन खण्डके स्वामी हैं, और सुदर्शन नामक चक्रको हाथसे फिरा सकनेमें समर्थ हैं तथा जिन्होंने सारंग नामक धनुषको खींचकर गोलाकार कर दिया था और नागशय्यापर आरूढ़ होकर पांचजन्य नामक शखको बजाया था। जांबुवतीके ये उद्धतताके वचन सुनकर नेमिनाथ रुष्ट हो गये ।४३-५०। रुक्मिणीने उसको रोका कि, अरी दुष्टनी ! ऐसा मत कह । इस सचराचर तीन लोकमें इनके समान कोई बलवान नहीं है। ऐसा कहकर रुक्मिणीने उस धोतीको लेकर स्वयं निचोड़ दी। परन्तु नेमिकुमार शान्त नहीं हुए। वे जांबुवतीका गर्व जानकर यायुधशालामें पहुँचे। बड़े क्रोधसे उसका दरवाजा खोलकर भीतर गये और चक्र तथा धनुष लेकर नागशय्या पर चढ़ गये । फिर उन्होंने उस धनुषको गोलाकार करके सोका मर्दन करके और चक्रको फिरा करके शंखको अपनी नासिकाके सुरसे बजाया। उसके प्रचंड शब्दोंको सुनकर श्रीकृष्ण जी दौड़े हुये आये और श्रीनेमकुमिारको उक्त अवस्थामें देखकर बोले, हे जिनेश्वर ! आपने न कुछ स्त्रीके वाक्यसे रुष्ट होकर यह क्या करना प्रारम्भ किया है ? उठो और क्रोधको छोड़ दो। ऐसा कहकर श्रीकृष्णजी भगवानको वहांसे उठाकर भली भाँति सन्तुष्ट करके अपने महलोंमें ले गये. और वहां बड़े आदर से उन्हें भोजनादि कराके चिन्ता करने लगे कि अब क्या करना चाहिये।५१. ५७। फिर सब कारण समझ करके वे शिवा देवीके महल में गये और उन्हें नमस्कार करके विनयपूर्वक Jain Educate www.indibrary.org. For Private & Personal Use Only Interational
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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