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प्रद्यम्न
चरित
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कि हे जनार्दन ! शम्बुकुमारने बड़े २ अमानुषिक कृत्य किये हैं' अर्थात् ऐसे कार्य किये हैं, जो मनु| प्योंसे नहीं हो सकते हैं। अतएव कृपा करके अब इसको प्रौढ़ बनाइये । और अपने समान इसको
भी सुख प्रदान कीजिये । सबके इस आग्रहको सुनकर श्रीकृष्णजी विचार करने लगे कि, इसको क्या देना चाहिये ? यह सब कुछ कर सकता है । अन्तमें निश्चय करके उन्होंने शम्बुकुमारको एक महीने के लिये अपना राज्य सौंप दिया ।५४-५७।
दूसरे दिन शम्बकमार संपूर्ण राजाओंके सहित राज्यसभामें आया और आनन्दके साथ सिंहासन पर विराजमान हुआ। बलभद्र कामदेव, पांडव, आदि सब राजाओंने तथा भानु सुभानुने उसे नमस्कार किया। इसप्रकार वह तीन खण्ड पृथ्वीका स्वामी होकर राज्य करने लगा ।५८-५६ ।
- अागे वह अपने साथ ही जन्मे हुए मित्रोंके साथ दूसरों को अतिशय दुर्लभ ऐसे इन्द्रियजन्य सुख भोगता हुआ एक पापकार्य में प्रवृत्त होगया। अपने मित्रोंके साथ कुलस्त्रियोंके घरोंमें जाकर उनका बलात्कारसे शील भंग करने लगा।६०-६१। श्रादमियोंको भेजकर, और उनके द्वारा स्त्रियोंका अच्छा बुरा रूप निर्णय कराके वह पापी रातको घरोंमें जाता था और स्त्रियोंका शील नष्ट करता था १६२। इसप्रकारके दुराचरणसे नगरमें रहनेवाले सब ही लोग अतिशय दुखी होगये। स्त्रियोंका शीलभंग होना, इससे बड़ा और क्या दुःख हो सकता है ? ।६३। निदान सब लोग एकत्र होकर राजमहल को गये । और श्रीकृष्ण महाराजसे नमस्कार करके इसप्रकार कहने लगे कि हे नाथ ! शम्बुकुमारने जो करतूत की है, सो सुनिये । वे अब कुल स्त्रियोंका बलपूर्वक शील हरण करने लगे हैं । अतएव अब हम द्वारिकाको छोड़कर कहीं अन्यत्र जाकर रहेंगे। जिस समय आपको राज्य प्राप्त हो जावेगा उस समय फिर लौट आवेंगे।६४ ६६। नारायणने कहा, हे महाजनों ! थोड़े दिन और ठहरो । जबतक मैंने अपने वचनसे दिया हुआ राज्य फिर नहीं पा लिया है, तब तक तुम लोग अपने घरोंमें खूब
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