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चरित
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बन्दोबस्तके साथ रहो। जब मैं राजसभामें जानेलगूंगा, तब तुम्हारा सबका कल्याण होगा। आश्वासनके वचन सुनकर लोग अपने घर जाकर प्रबन्धके साथ रहने लगे।
जब एक महीना हो चुका, तब श्रीकृष्णजी राजसभामें पहुँचे और अपना राज्य प्राप्त करके शंबकुमारसे बोले, हे पापी ! तुझे मेरे राज्यमें क्षणभर भी नहीं ठहरना चाहिये । तुझे ऐसी जगह चला जाना चाहिये, जहांसे तेरा नाम भी नहीं सुनायी देवे।७०-७१ ऐसा कहकर नारायणने ताम्बूल के तीन बीड़े दिये । शंबुकुमार उन्हें लेकर और सभासे निकल कर चला गया ।७२। उसी समय प्रद्यु - म्नने पूछा हे तात ! शंबकुमारका आगमन किसी भी समय हो सकेगा, या नहीं ? पिताने उत्तर दिया, हां ! यदि सत्यभामा हथिनीपर बैठकर, उसके सन्मुख जावेगी, औरभक्तिपूर्वक गाजे बाजेके साथ ले
आवेगी, तो मेरे सम्मुख पा सकेगा, नहीं तो नहीं ७३-७५। शंबूकुमार राजसभासे निकलकर अपनी माताके पास गया और उसे नमस्कार करके प्रद्युम्नकुमारके आदेशके अनुसार सत्यभामाके वनमें गया। वहां जाकर उसने एक युवती स्त्रीका रूप बनाया जो संपूर्ण शुभ लक्षणोंसे युक्त थीं, रूपवती तथा सौभाग्यवती थी, नवीन यौवनसे भूषित थी सुडौल थी, और सब प्रकारके आभूषणोंसे शोभायमान थी ।७६-७८। इस प्रकारका सुन्दर रूप बनाकर शंबुकुमार उस निर्जन वनमें जा बैठा । उसके बैठते ही वहां सत्यभामा भी पहुँच गई । इस अनोखी स्त्रीको देखकर उसे बड़ा भारी अचरज हुश्रा । अतएव वह समीप आकर बोली, हे बेटी ! मुझे बतला कि, तू ऐसे निर्जनवनमें अकेली क्यों बैठी है ? तू तो देवकन्याके समान सुन्दरी कन्या है ।७६-८१। यह सुनकर युवती बोली, हे माता ! में एक राजाकी पुत्री हूँ। सो अपने मामाके घर रहती थी। वहां मुझे यौवनावस्था प्राप्त हो गयी थी, अतएव मेरे पिता मुझे विवाह करनेके हेतु लिवाने के लिये गये थे।८२.८३॥ सो वे मुझे वहांसे पालकी में प्रारूढ़ कराके चले थे, और बड़ी भारी सेनाके साथ आज रात्रिको इसी स्थानमें आकर ठहरे थे।४। रातको निद्रा
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