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पान
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मायामयी सेना भी जीतना चाहिये । यह सुनकर शम्बकुमारका मुख कुछ मलीन होगया। यह देखकर | प्रद्युम्नकुमारने उसे अपनी श्रेष्ठ विद्या दे दी। इसके अनन्तर शम्बुकमार और सुभानुकुमार दोनों || चरित्र ही सेनाके देखने के लिये नगरीसे बाहिर गये। उनके साथ और भी बहतसे लोग थे। वहां सुभानुकी मायामयी सेनाको देखकर जो कि पहलेहीसे तैयार थी, शम्बुकुमारने भी वैसीही एक सेना बनायी। ४२४५। जिसका विस्तार इतना होगया कि, हाथी घोड़ों और रथोंका कहीं अन्त नहीं दिखायी देता था। शूरवीरोंकी और विमानोंकी गिनती नहीं हो सकती थी।४६। और सुभानुकी सेना उसमें ऐसी डूब गई थी कि-जान नहीं पड़ती थी।
इसके पीछे दोनों सेनाओंमें मायामयी जीवोंका क्षय करनेवाला घनघोर युद्ध हा४७॥ हाथी सवारोंने हाथीसवारोंके साथ, घुड़सवारोंने घुड़सवारों के साथ, रथियोंने रथियों के साथ और पैदल सुभटोंने पैदल सुभटोंके साथ खूब युद्ध किया । आखिर सुभानुकी बनाई हुई सेनाको शम्बुकुमारने जीत ली, इसमें जब कोई सन्देह नहीं रहा ।४८-४९। तब प्रद्युम्नकी आज्ञानुसार पहले जीती हुयी मुहरोंकी अपेक्षा दूनी मुहरें अर्थात् २५६ करोड़ मुहरें सत्यभामासे मंगायी गयीं और लोगोंने वे सब शम्बुकुमारको दे दी।५०। इसप्रकार जब सारा धन हारकर सत्यभामा बैठ रही । और गांव नगर तथा वनमें जहां तहां शम्बुकुमारके दानकी कथा सुनायी पड़ने लगी। क्योंकि इस सत्यभामाके विवादमें उसने जो कुछ जीता था, वह सबका सब दान कर दिया था। तब उस सब लोगोंके प्यारे और दातार शम्बकमारने सत्यभामासे कहा, क्या तुम्हारे पास अब भी और कुछ धन है ? प्रश्न सुनकर सत्यभामा चुप हो रही ! क्या करै ! हार और जीत पाप और पुण्यके उदयके अनुसार होती है। इसप्रकार प्रद्युम्नकुमारके प्रसादसे शम्बुकुमारकी खूब शोभा हुयी । उसकी कीर्ति चारों ओर फैल गयी ५१. | ५३॥ तदनन्तर बलभद्र, युधिष्ठिर तथा भीमादि सब राजाओंने मिलकर श्रीकृष्णजीको समझाया |
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