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________________ | चरित्र २८७ अतिसय थानन्द हुआ।९८। उसीसमय उदधिकुमारी आदि पांचसो पाठ कन्यायें भी जो देवांगनाओं के समान रूपवतो गुणवती थीं, प्रद्युम्नकुमारको ब्याही गयीं।६६। उन्हें विवाह करके उसने बड़ी भारी विभूतिके साथ नगरी में प्रवेश किया। श्रीकृष्णजी के कहने से विद्याधरोंने ही प्रद्युम्नका विवाह विहित किया ।२००। विद्याधर लोग स्वजनों और परिजनोंसे भली भांति आदर सत्कार पाते हुए कितने ही दिन द्वारिकामें रहे । एक दिन कालसंवर महाराजने बड़ी भारी विनयसे हाथ जोड़कर कहा कि, विष्णुमहाराज ! यदि आप मुझे कृपा करके आज्ञा देवें, तो मैं अपने स्वजन परिजनोंके साथ अपने नगरको जाऊ ।१-३। विद्याधरनरेशको जानेके लिये उत्सुक देखकर श्रीकृष्णजीअपने वन्धुजनोंके सहित अतिशय स्नेह प्रगट करके बोले, हे मित्र ! आपने प्रद्युम्नको अपने मन्दिरमें ले जाकर वृद्धिको प्राप्त किया है, इसलिये यह पहिले आपका ही पुत्र है, पीछे मेरा है ।४-५। ऐसा विचार करके हे विद्याधरपति ! आपको भी इम पुत्रके विषयमें जैसा उचित हो, वैसा करना चाहिये । श्रीकृष्णजीके पश्चात् रुक्मिणी ने भी ऐमा ही कहा कि, इसे आपको अपना पुत्र समझना चाहिये । और कनकमाला को विधिपूर्वक नाना भांतिके वस्त्र प्राभरण आदि देकर संतुष्ट किया ।६-७। फिर श्रीकृष्णजीने सम्पूर्ण विद्याधरोंको आदरपूर्वक संतुष्ट करके कालसंवरको अपने नगरीकी ओर विदा किया। उन्हें पहुँचाकर श्रीकृष्णजी तो रुक्मिणी के सहित विद्याधरोंकी चर्चा करते हुए अपने महलको लौट आये, परन्तु प्रद्युम्नकुमार मोहके मारे अपने उन माता पिताओं के साथ चला गया। सो कुछ दूर जाकर उनके चरण कमलोंको नमस्कार करके उन्हें अपनी विनयसे सन्तुष्ट करके लौट पड़ा और यादवोंसे भरी हुई नगरी में था पहुँचा ।८-११॥ प्रद्युम्नकुमार का विवाह देखकर यदुवंशी भोजवंशी आदि सब ही शुभचिन्तक सुखी हुए। Jain Educa. International ate & Personal Use Only www. brary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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