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________________ བསུས चरित्र अतएव यह कामदेवका जन्म पाया है, नहीं तो कहां था ! इसप्रकारकी पापरहित विद्या, शूरवीरता, मनोहरता. गुरुजनों के चरणों में भक्त और रमणीय लक्ष्मी इसे कैसे मिलती ?।६९-७१।। इसप्रकार स्त्रियोंकी नानाप्रकारकी बातें सुनते हुए प्रद्युम्नकुमार जो कि हाथीपर आरूढ़ थे, जिनके मस्तकपर सफेद छत्र था, चवर दुर रहे थे, और जो स्त्रियोंके नेत्ररूपी कुमुदोंको विकसित करनेके लिये चन्द्रमाके समान थे, अपने पिताके साथ अपनी माताके उत्सवयुक्त महल में पहुँचे ।७२-७३। अपने सर्व लक्षणोंसे लक्षित पुत्रको आया हुआ देखकर माताने अर्घपाद्य आदि लेकर मंगल क्रिया की ।७४। उस समय कामकुमारके आनेपर एक सत्यभामा और भानुकुमारको छोड़के सारी द्वारिकाके लोगोंने उत्सव मनाया । सत्यभामाके यहां उत्सवके स्थानमें शोक हुआ ।७५। बलदेव, श्रीकृष्ण, प्रद्युम्न तथा और भी अनेक राजा कितने ही दिन रुक्मिणीके महल में आनन्दपूर्वक ठहरे । एक दिन नारायण ने अपने मन्त्रियों से कहा कि, अब प्रद्युम्नका विवाह बड़े भारी उत्सबके साथ करना चाहिये। यह सुनकर कुमारने विनयपूर्वक कहा कि, महाराज कालसंवर और रानी कनकमालाके समक्षमें मेरा विवाह होगा, नहीं तो मैं विगह नहीं करूँगा। वं मेरे पालन करनेवाले सच्चे माता पिता हैं ।७६-७६ । कुमारका उचित विचार सुनकर नारायणने उसी समय एक दूत कालसंवर महाराजके पास भेजा। उसने निकट जाकर प्रद्युम्नकी प्रतिज्ञा सुनाई कि, आपके उपस्थित हुए बिना वे अपना विवाह नहीं करेंगे। उसे सुनकर विद्याधरपति अपनी रानीके साथ विचार करके चलने को तैयार होगया। परन्तु उमका हृदय अपनी पूर्वकृतिपर लज्जासे व्याकुल होने लगा।८०-८१। श्राखिर वह बड़ी भारी सेनाके साथ बहुतसी कन्याओंको और रतिकुमारीको उसके पिताके साथ लेकर द्वारिकामें जा पहुँचा ।२। विद्याधरोंके राजाको आया सुनकर प्रद्युम्नकुमार अपने पिताके सहित बड़ी भारी सेना लेका सन्मुख गया । और वहां उसने बड़े भारी स्नेहसे कालसंवर और कनकमालाके Jain Education international For Private & Personal Use Only www. library.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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