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________________ प्रपन्न २८४ - - पुरुषोंसे क्या प्रयोजन है ? दूसरी प्रौढ अवस्था की स्त्री बोली, यदि मेरे पुत्र हो, तो कामदेव सरीखा हो नहीं तो पुत्रका न होना ही अच्छा है ।५५-५६। उस रुक्मिणीको धन्य है, जिसने इसे अपने उदर में धारण किया है और इस श्रीकृष्णको धन्य है, जिसके घरमें ऐसे पुत्रका जन्म हुआ है ।५७। कोई तीसरी कामिनी बोली, उस कनकमाला विद्याधरीको धन्य है, जिसने इसे लालन पालन करके तथा दूध पिलाकर बढ़ाया है ।५८। यादवोंके कुलका यह एक जगत्प्रसिद्ध पुण्य ही है, जिसमें इसका अवतार हुआ है, और द्वारिका नगरीका बड़ा भारी भाग्य है, जिसमें यह विचरण करेगा ।५६। और सबसे अधिक प्रशंसाके योग्य तो उदधिकुमारीका पुण्य है, जो इसके अङ्कमें प्रारूढ़ होकर रमण करेगी।६०। और एक कामिनी अपनी संगवालीसे बोली, हे सखी ! देख देख, यह प्रद्युम्नकुमार श्राया। यह श्रीकृष्णजीका वही पुत्र है, जिसे छोटेपन में कोई शत्रु हर ले गया था और खदिरा अटवीमें शिलाके नीचे ढंक गया था। तथा जिसे एक विद्याधरोंका राजा अपनी विद्याके बलसे निकाल ले गया था और घर ले जाकर उसने लालन पालनकर बड़ा किया था, तथा विद्याओंसे भूषित किया था।६१-६३। अब यह सोलह प्रकारके लाभ और विद्याधरोंकी विद्यानोंको लेकर रुक्मिणोके पूर्वपुण्यके प्रभावसे अपने पिताके घर आया है ।६४। इसके पुण्यके योग से शत्रु भी परम बन्धु हो गये हैं। कहां तो इसके सोलह प्रकारके लाभ, कहां इसकी आकाशचारिणी गति, कहां इसकी प्रीति और कहां पृथ्वीमें फैली हुई कीर्ति, द्वारिकापुरीमें अच्छे कुलसे उत्पन्न हुए बहुतसे यदुवंशो हैं, परन्तु उनमेंसे किसी एकका भी नाम किसीको (इतना) ज्ञात नहीं है।६५-६७। यह सुनकर एक और स्त्री बोली, अरी मूर्खा तू इस प्रकार बारम्बार क्या प्रशंसा करती है, विद्या धन, कोष, और यश सब पुण्यसे प्राप्त होते हैं ।६८। इसने पूर्व जन्ममें दुर्धर तप किया है, सत्पात्रोंको भावपूर्वक उत्कृष्ट दान दिया है, भाव लगाकर श्रीजिनेन्द्रचन्द्रकी पूजा की है, और निर्मल चारित्र धारण किया है । Jain Educatiemational For Private & Personal Use Only www.jarrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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