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________________ चरित प्रधम्न २७४ संग्राम करने लगे। वे अपनी लीलासे बड़े ही शोभायमान दिखते थे ।१२-१३। उनके सिवाय और भी जो हाथी हथियारोंसे घायल हो रहे थे, वे उस रणभूमिमें रुधिरकी धारा बहाने लगे। तथा धातुरूपी जलसे पर्वतोंकी उत्कृष्ट शोभाको धारण करते हुए निश्चल हो रहे अर्थात जीव रहित हो गये ।१४१५। अनेक सूरवीरों के हाथ पैर चक्रमें कट गये थे तो भी वे उन्हें किसी तरह धारण किये हुए उनके काटनेवाले शत्रुओं पर जा पड़े और उन्हें मारकर आप भी उनके साथ धरती पर सो गये । सो ठीक ही है, जिनका चित्त कीर्ति पानेका लोभी होता है और जो स्वामीका कार्य करनेमें तत्पर होते हैं, अपनी निःसार देहमें जरा भी ममत्व नहीं करते हैं । शत्रुको मारकर हो मरते हैं ।१६-१७। इस प्रकारके उस महा संग्राममें यादवोंकी सेनाने प्रदयुम्नकुमारकी सेनाको जल्द ही नष्ट भ्रष्ट कर दिया ।१८। यह देख प्रद्युम्नके बलवान वीरोंने श्रीकृष्णजीकी प्रचण्ड सेनाको भी बातकी बातमें तितर बितर कर दी ।१९। उस समय अपनी सेनाको भागते हुए देखकर श्रीकृष्णजीने पांडवादि शूरवीरोंको वलदेवजीके साथ भेजे । सो वे भी प्रद्युम्नकुमारकी सेनाको ध्वंस करने लगे। जब कुमारने अपने बलको नष्ट होते देखा, उसने भी बलभद्र पांडवादि बड़े २ मायामयी शूरवीर बनाकर भेज दिये, सो वे कृष्णकी सेनाके साथ संग्राम करने लगे। वे शरवीर अपने २ नामके धारण करनेवाले शरवीरों को बुलाकर-अर्थात् मायामयी बलभद्र पांडवादि सच्चे बलभद्रादिको बुला बुलाकर परस्पर में लड़ने लगे।२०-२३। उस युद्ध में हाथियोंकी चिंघाड़से घोड़ोंके हींसनेसे, बाजोंके नादसे, धनुषोंकी टङ्कारसे, शूरवीरोंके सिंहनादसे और हथियारोंके परस्पर भिड़नेके शब्दोंसे धरती और आकाश दो होने की इच्छा करते थे, अर्थात् फटे जाते थे।२४-२५। और अर्धचन्द्र चक्रोंसे तथा वाणोंसे जब राजाओंके छत्रों के दंड मूलसे कट जाते थे और हवाके जोरसे अाकाशमें उड़ने लगते थे, तब उन्हें देखकर ऐसी शंका Jain Educe international For Private & Personal Use Only www.jadibrary.org
SR No.600020
Book TitlePradyumna Charitra
Original Sutra AuthorSomkirtisuriji
AuthorBabu Buddhmalji Patni, Nathuram Premi
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year1998
Total Pages358
LanguageHindi
ClassificationManuscript & Story
File Size9 MB
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