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प्रचम्ना
चरित्र
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___अथ एकादशमः सर्गः। अब श्रीकृष्ण और प्रद्युम्नकी सेनाके उस संगममें जो २ वृत्त हुए उन सबका यहां वर्णन करते हैं,-१
उन दोनों प्रलयकालके समुद्र जैसी प्रचण्ड सेनाओंके योद्धाओंका बहुत जल्दी बीच में ही संघट्ट हो गया। सो गर्जना करते हुए उन धीर वीर सुभटोंका देव और दैत्यों को भी भयका उत्पन्न करनेवाला बड़ा भारी संग्राम हुअा ॥२-३।
हाथीसवार हाथीसवारोंके साथ जुट गये, घुड़सवार घुड़सवारोंसे लड़ने लगे, पैदल पैदलोंके साथ भिड़ गये और रथवाले रथवालोंके साथ अड़ गये। इस प्रकार सबके सब शूरवीर संग्राम करने लगे। परन्तु यथार्थमें उन सबका बैर बिना हेतुका था, और वह संग्राम विना निमित्तका था ।४-५। बड़े बड़े योद्धा बाणोंसे छिन्न भिन्न होकर पृथ्वीपर पड़ गये, हाथी हाथियोंके मारे हुए रणभूमिमें गिर पड़े, रथ रथोंकी चोटसे धराशायी हो गये, और घोड़े घोड़ोंके घातसे लोट गये। इस प्रकारसे उस रणांगन में बड़ा भयङ्कर संग्राम हुा ।६-७।
ढाल तलवार वाले योद्धा ढाल तलवार वालोंसे उलझ गये । और जिनके पास कुछ नहीं था, केवल वृक्ष ही हथियार था, वे वृक्षवालोंसे भिड़ गये। कोई २ केशाकेशी तथा मुष्टामुष्टि ही करने लगे, अर्थात् एक दूसरेके बाल खींचकर तथा एक दूसरेको मार मारकर संग्राम करने लगे। और भाले वाले भालेवालों के साथ विकट लड़ाई लड़ने लगे।६।
किसी शूरवीरने जबतक एक हाथोके हौदेको छदा, तब तक हाथीके स्वामी अर्थात् महावतने दसरा हौदा ला दिया। इतने ही में उसने बड़े जोरसे एक शीघ्रगामी बाण ऐसा मारा क, हाथीके मस्तकपर जो कलगी थी वह छिद करके गिर गयी ।१०-११। तब बड़े २ हाथी सूडोंसे सूड और खीसोंसे (दांतोंसे) खींस भिड़ाकर तथा प्रागेके पैर संकुचित करके धरनीको कम्पायमान करते हुए
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