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प्रद्युम्न २६६
था, क्रोधके मारे अन्धे सरीखे होकर भ्रमण करने लगे। कितने ही लाल २ आंखें करके ही मुखको कम्पित करने लगे। कितने ही क्रोधसे विह्वल होकर पाषाणमयी खम्भोंको तोड़ने फोड़ने लगे और कितने ही म्यानसे तलवार निकालकर खड़े होगये ।८-६।।
इन सब चुभित हुए शूरोंसे कई लोग इस प्रकार अच्छे वचन बोले कि, तुम सरोखे थोड़ी शक्तिवाले थोड़ेसे लोगोंसे यह नहीं जीता जावेगा। अतएव शूरवीरोंके सचेत करनेमें-प्रतिबोधित करने में जो पण्डिता होती है, उम संग्राम भेरीको बजाओ, उससे सबको मालूम होजावेगा।१०.११॥
आखिर रणभेरी बजाई गई। उसका नाद सुनते ही सबके सव श्रेष्ठ शूरवीर अपने हाथका आधा किया हया काम जैसाका तैसा छोड़कर निकल पड़े ।१२। कईएक कुलवान शीलवान और बलवान शूरवीर अपनी अपनी स्त्रियोंको जो भेरीके शब्दसे तत्काल भयभीत हुई थीं, एकान्तमें समझाकर आश्वासन देकर निकले और कई एक गर्वशाली मानी बली वीर अपने शरीर कवच (जिरहवख्तर) धारण करके निकले ।१३-१४। वे अागे होनेवाले संग्रामके हर्षसे ऐसे प्रफुल्लित हुए-इतने फूले कि उनके शरीरके कवच टूट गये-१५॥
वीरगण हाथी घोड़ों और रथोंपर चढ़े हुए धनुषवाण आदि उत्तमोत्तम आयुध धारण किये हए, शंख भेरी आदिके नादसे दशों दिशाओं को पूरित करते हुए-राजाके प्रांगनमें आकर एकत्र हए। उनमें कोई कोई योद्धा तो छत्र लगाये हुए थे और किसी किसीके मस्तकपर चँवर दुलते थे।१६१७। राजांगणसे सेनाका कूच हुआ। उसके साथ बड़े २ भारी हाथी चलने लगे। वे ऐसे जान पड़ते थे, जैसे प्रलय कालकी हवाके चलाये हुए बादल ही चल रहे हों । जिस प्रकार हाथी भयङ्कर, ऊंचे षष्ठिहायिन अर्थात् छह वर्षकी उमरके कुथप्राप्तरुचो अर्थात् झूलसे शोभित होनेवाले और मद जलकी वर्षासे पृथ्वीको कीचड़मय करनेवाले थे, उसी प्रकारसे बादल भी भयंकर, काले काले, ऊंचे,
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